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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .
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है । बौद्धों के उक्त कथन से तो हमारा अभीष्ट सिद्ध हो जाता है । हम भी कह सकते हैं कि पक्ष के वचन के बिना कोई यह कैसे जानेगा कि साध्य का आधार क्या है ? अतः हेतु के वचन की तरह पक्ष का वचन भी आवश्यक है।
नैयायिकों ने अनुमान के पाँच अंग माने हैं, किन्तु जैनों ने पक्ष और हेतु ये दो ही अंग माने हैं । इसी बात को यहाँ बतलाया जा रहा है
एतद्वयमेवानुमानाङ्गंनोदाहरणम् ॥ ३७॥ ।' पक्ष और हेतु ये दो ही अनुमान के अंग हैं, उदाहरण अनुमान का अंग नहीं है । जैनन्याय में पक्ष और हेतु इन दो को ही अनुमान का अंग माना गया है । यहाँ उदाहरण आदि तीन अनुमान के अंग नहीं है । जो लोग उदाहरण को अनुमान का अंग मानते हैं उनसे यहाँ तीन विकल्प करके पूछा जा सकता है-(१) क्या साध्य की प्रतिपत्ति के लिए (२) हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव का निश्चय करने के लिए अथवा (३) व्याप्ति के स्मरण के लिए उदाहरण का प्रयोग किया जाता है । इनमें से प्रथम विकल्प का निराकरण करने के लिए सूत्र कहते हैंन हि तत् साध्यप्रतिपत्त्यङ्गं तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥३८॥
उदाहरण साध्य की प्रतिपत्ति का कारण नहीं है । अर्थात् उदाहरण के प्रयोग से साध्य की प्रतिपत्ति नहीं होती है । क्योंकि साध्य की प्रतिपत्ति में तो साध्य के साथ अविनाभावी हेतु का ही व्यापार होता है । तात्पर्य यह है कि साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध रखने वाले हेतु के प्रयोग से ही साध्य की प्रतिपत्ति ( ज्ञान ) हो जाती है।
द्वितीय विकल्प का निराकरण करने के लिए सूत्र कहते हैंतदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धेः ॥३९॥ ___ इस सूत्र में पूर्व सूत्र से 'न' की अनुवृत्ति होती है । हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव का निश्चय करने के लिए उदाहरण के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि विपक्ष में बाधक प्रमाण से ही अविनाभाव का निश्चय हो जाता है । हेतु को विपक्ष में नहीं रहना चाहिए । अर्थात् साध्य के अभाव में हेतु को नहीं रहना चाहिए । अतः यह हेतु विपक्ष में नहीं रहता है, ऐसा निश्चय हो जाने से ही हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव