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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .. है । इन दोनों धर्मियों में साध्यधर्मविशिष्टता साध्य होती है । अर्थात् यहाँ. धर्मी में साध्यधर्म को सिद्ध किया जाता है । जैसे इस देश में अग्निमत्व को सिद्ध किया जाता है और शब्द में परिणामित्व ( अनित्यत्व ) को सिद्ध किया जाता है। व्याप्तिकाल में साध्य क्या होता है ? ।
व्याप्तौ तु साध्यं धर्म एव ॥३२॥ - व्याप्तिकाल में तो साध्य धर्म ही होता है, साध्यधर्मविशिष्ट धर्मी नहीं । जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है, इस प्रकार से व्याप्तिज्ञान करते समय अग्निरूप धर्म ही साध्य होता है। व्याप्तिकाल में धर्मविशिष्ट धर्मी को साध्य मानने में क्या हानि है ?
अन्यथा तदघटनात् ॥३३॥ यदि व्याप्तिकाल में धर्मविशिष्ट धर्मी को साध्य माना जाय तो व्याप्ति नहीं बन सकती है । जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्निविशिष्ट पर्वत होता है, ऐसी व्याप्ति कभी नहीं होती है । अतः व्याप्तिकाल में धर्म ही साध्य होता है।
यहाँ बौद्ध कहते हैं कि अनुमान करते समय पक्ष का वचन अनावश्यक है । पक्ष तो वहाँ गम्यमान होता है । अर्थात् जब कोई कहता है कि जहाँ धूम होता है वहाँ अग्नि होती है और यहाँ धूम है, ऐसा कहने से ही यह ज्ञात हो जाता है कि कोई प्रदेश अग्निमान् अवश्य है और जो प्रदेश अग्निमान् है वही पक्ष है । अतः पक्ष का वचन अनर्थक है ।
बौद्धों का उक्त कथन अनुचित है इसे बतलाने के लिए सूत्र कहते
पक्ष वचन की आवश्यकता साध्यधर्माधार सन्देहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम् ॥३४॥ ___ यद्यपि अनुमान के प्रयोग में पक्ष गम्यमान होता है, तथापि साध्यधर्म के आधार में होने वाले सन्देह को दूर करने के लिए गम्यमान पक्ष का भी वचन आवश्यक है । साध्यधर्म का आधार क्या है ? अग्नि कहाँ है, पर्वत में या अन्यत्र? ऐसा सन्देह होना स्वाभाविक है । अतः इस सन्देह को दूर