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तृतीय परिच्छेद : सूत्र २४-३१
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की प्रसिद्धि तीन प्रकार से होती है-कहीं विकल्प से, कहीं प्रत्यक्षादि प्रमाणों से और कहीं दोनों से । * विकल्पसिद्ध धर्मी में साध्य क्या होता है ?
विकल्पसिद्धे तस्मिन् सत्तेतरे साध्ये ॥२८॥ विकल्पसिद्ध धर्मी में सत्ता और असत्ता साध्य होती हैं । जिस धर्मी का किसी प्रमाण से न तो अस्तित्व सिद्ध होता है और न नास्तित्व सिद्ध होता है उसे विकल्पसिद्ध धर्मी कहते हैं । जहाँ धर्मी विकल्प सिद्ध होता है वहाँ किसी का अस्तित्व और किसी का नास्तित्व सिद्ध किया जाता है । इसी बात को उदाहरण द्वारा बतलाते हैं
अस्ति सर्वज्ञः नास्ति खरविषाणमिति ॥२९॥ सर्वज्ञ है और खरविषाण ( गधे का सींग ) नहीं है ) यहाँ सर्वज्ञ और खरविषाण विकल्पसिद्ध धर्मी हैं । इनकी सिद्धि किसी प्रमाण से न होकर विकल्प ( मनोविकल्प ) से होती है । यहाँ सर्वज्ञ का अस्तित्व ( सत्ता ) और खरविषाण का नास्तित्व ( असत्ता ) सिद्ध किया जाता है । हम कहते हैं कि सर्वज्ञ है, क्योंकि उसमें बाधक प्रमाणों का अभाव सुनिश्चित है । इसी प्रकार हम कहते हैं कि खरविषाण नहीं है, क्योंकि दृश्य होने पर भी उसकी उपलब्धि नहीं होती है । इस प्रकार उक्त हेतुओं के द्वारा सर्वज्ञ की सत्ता और खरविषाण की असत्ता सिद्ध की जाती है । - प्रमाणसिद्ध और उभयसिद्ध धर्मी में साध्य क्या होता है ? - प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्मविशिष्टता ॥३०॥
प्रमाणसिद्ध धर्मी में तथा उभयसिद्ध धर्मी में साध्यधर्म-विशिष्टता साध्य होती है । अर्थात् प्रमाण सिद्ध धर्मी में तथा उभयसिद्ध धर्मी में यह सिद्ध किया जाता है कि यह धर्मी साध्य धर्म से विशिष्ट ( सहित ) है । इसी बात को उदाहरण द्वारा बतलाते हैं.. अग्निमानयं देशः परिणामी शब्द इति यथा ॥३१॥
जैसे यह देश अग्निमान् है और शब्द परिणामी है । यह देश प्रत्यक्ष प्रमाण सिद्ध धर्मी है और शब्द उभयसिद्ध धर्मी है । श्रूयमाण शब्द तो श्रावणप्रत्यक्षसिद्ध धर्मी है किन्तु अन्य देश और अन्य काल में होने वाला शब्द विकल्पसिद्ध धर्मी है । इसलिए शब्द को उभयसिद्ध धर्मी कहा गया