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________________ ११४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .. . - इष्ट विशेषण वादी के लिए क्यों कहा गया है इसे बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं __ प्रत्यायनाय हीच्छा वक्तुरेव ॥२४॥ अपने को अभिप्रेत अर्थ के प्रतिपादन की इच्छा वक्ता को ही होती है और इच्छा का जो विषय होता है वह इष्ट कहलाता है । अर्थात् वक्ता ( वादी ) उसी विषय का प्रतिपादन करता है जो उसे इष्ट होता है । यह दूसरी बात है कि वादी जिस विषय को प्रतिवादी के लिए सिद्ध करता है वह विषय प्रतिवादी को इष्ट भी हो सकता है और अनिष्ट भी । अतः इष्ट विशेषण वादी के लिए है, प्रतिवादी के लिए नहीं। अब यह बतलाना है कि कहीं साध्य धर्म होता है और कहीं धर्मी साध्यं धर्मः क्वचित्तद्विशिष्टो वा धर्मी ॥२५॥ कहीं धर्म साध्य होता है और कहीं धर्मविशिष्ट धर्मी साध्य होता है । व्याप्ति काल में धर्म ( अग्नि ) साध्य होता है । जब हम 'जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है', इस प्रकार से व्याप्ति का ग्रहण करते हैं तब वहाँ धर्म साध्य होता है । और जब हम ‘पर्वत में अग्नि है, धूम होने से' इस प्रकार अनुमान का प्रयोग करते हैं तब धर्मविशिष्ट धर्मी ( अग्निविशिष्ट पर्वत ) साध्य होता है। अब यह बतलाया जा रहा है कि पक्ष धर्मी का पर्यायवाची शब्द है ___ पक्ष इति यावत् ॥२६॥ पक्ष धर्मी का ही दूसरा नाम है । धर्मी और पक्ष दोनों ही पर्यायवाची .. शब्द हैं । जहाँ साध्य को सिद्ध किया जाता है वह पक्ष कहलाता है । जैसे पर्वत में अग्नि को सिद्ध करते समय पर्वत पक्ष होता है । जिसमें धर्म रहता है वह धर्मी कहलाता है । पर्वत में अग्निरूप धर्म रहता है इसलिए उसे धर्मी कहते हैं। धर्मी प्रसिद्ध होता है इसे बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं प्रसिद्धो धर्मी ॥२७॥ धर्मी वादी और प्रतिवादी सबके लिए प्रसिद्ध होता है, जैसे पर्वत रूप धर्मी सबके लिए प्रसिद्ध है । इस प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिए । धर्मी
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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