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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .
इदमस्माद्दूरम् ॥९॥ जैसे यह इससे दूर है । किसी निकटवर्ती वस्तु को देखने के बाद जब दूरवर्ती वस्तु का दर्शन होता है तब ऐसा ज्ञान होता है कि यह इससे दूर है । यहाँ निकटता और दूरता की दृष्टि से दो वस्तुओं की तुलना की गई है । दूरवर्ती वस्तु निकटवर्ती वस्तु की प्रतियोगी है । इसलिए इसको प्रातियोगिक प्रत्यभिज्ञान कहा गया है । ___सामान्य प्रत्यभिज्ञान का उदारहण बतलाते हैं- ...
वृक्षोऽयमित्यादि ॥१०॥ जैसे यह वृक्ष है । जो व्यक्ति वृक्ष को नहीं जानता है उसे किसी ने बतलाया कि शाखादिमान् वृक्षः' वृक्ष शाखादि से युक्त होता है । तदनन्तर शाखादियुक्त वस्तु को देखने पर उसे ज्ञान होता है कि वृक्ष शब्द का वाच्य अर्थ यह वस्तु है । यहाँ संज्ञा ( वृक्ष शब्द ) और संज्ञी ( वृक्ष अर्थ ) में वाच्य-वाचक-सम्बन्ध का ज्ञान होता है । यह भी एक प्रत्यभिज्ञान है । इसे सामान्य प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । इसी प्रकार और भी कई प्रत्यभिज्ञान होते हैं ।
प्रत्यभिज्ञानप्रामाण्य विचार पूर्वपक्ष
मीमांसकों का कहना है कि प्रत्यक्षस्वरूप होने के कारण प्रत्यभिज्ञान को परोक्ष मानना गलत है । प्रत्यभिज्ञान में अन्य प्रत्यक्षों की तरह इन्द्रियों का अन्वय-व्यतिरेक पाया जाता है । स्मरणपूर्वक होने के कारण इसमें प्रत्यक्षत्व का अभाव नहीं माना जा सकता है । स्मरण के पश्चात् होने पर भी जब सत् पदार्थ के साथ इन्द्रियों का सन्निकर्ष होता है तभी प्रत्यभिज्ञान होता है । इसलिए इसको प्रत्यक्ष मानने में कोई विरोध नहीं है । इन्द्रिय
और अर्थ के सन्निकर्ष से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह प्रत्यक्ष कहलाता है, चाहे वह ज्ञान स्मृति के पहले हो या बाद में । अतः प्रत्यभिज्ञान प्रत्यक्ष ही है, परोक्ष नहीं। उत्तरपक्ष
मीमांसकों का उक्त कथन समीचीन नहीं है । क्योंकि प्रत्यभिज्ञान में इन्द्रियों का अन्वय-व्यतिरेक नहीं पाया जाता है । यदि वह इन्द्रियों के