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________________ - १२ - आवश्यकतानुसार परामर्श भी देते रहे । परम हर्ष की बात यह है कि वाचना के अन्तिम दिन पूज्य उपाध्यायश्री ने प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन के अन्तिम पृष्ठ का स्वयं वाचन करके उल्लासमय वातावरण में वाचना का सानन्द समापन किया । इस प्रकार वाचना की सफलता का पूर्ण श्रेय परम पूज्य उपाध्यायश्री तथा इसमें भाग लेने वाले विद्वानों को प्राप्त होता है । मैंने प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन में जो कुछ लिखा है उसमें कुछ त्रुटियों का होना स्वाभाविक है । क्योंकि 'को न.विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे' । अतः यदि विद्वज्जन मेरी त्रुटियों की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट करें तो मैं उनका आभारी रहँगा। विद्वानों से विशेष अनुरोध है कि वे 'परिशिष्ट-१: कुछ विचारणीय बिन्दु' को पढ़ने का कष्ट अवश्य करें तथा उन बिन्दुओं पर अपने अभिमत से मुझे अवगत कराने की कृपा करें जिससे मैं उनके अभिमत से लाभान्वित हो सकूँ । यह एक सुखद संयोग है कि गत वर्ष श्रुतपंचमी के दिन इस पुस्तक के लेखन कार्य का समापन हुआ था और इस वर्ष ३० मई १९९८ को श्रुतपंचमी के पुण्य अवसर पर इसका विमोचन होना निश्चित हुआ है । __ श्रीमान् डॉ० कमलेशकुमार जी जैन (वरिष्ठ प्राध्यापक, जैनबौद्धदर्शन-विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) ने इस कार्य के लिए आवश्यक पुस्तकों की व्यवस्था करके तथा लेखन कार्य में समय-समय पर आवश्यक परामर्श देकर बहुत सहयोग किया है । इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता वर्द्धमान मुद्रणालय में ऑफ सेट पर तत्परतापूर्वक कलापूर्ण मुद्रण के लिए श्रीमान् भाई बाबूलाल जी फागुल्ल को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ । अन्त में मेरी भावना हैजैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि । महावीर जयन्ती पता वीर नि० सं० २५२४ १२२-बी, रवीन्द्रपुरी ९ अप्रैल १९९८ वाराणसी-२२१००५ विनयावनत उदयचन्द्र जैन सर्वदर्शनाचार्य
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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