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________________ - ११ - यहाँ यह.स्मरणीय है कि पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने परीक्षामुख, न्यायदीपिका, प्रमेयकमलमार्तण्ड, अष्टसहस्री आदि न्यायविद्या के अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया है और इसी कारण न्यायविद्या में आपकी गहन अभिरुचि है । ललितपुर में मार्च १९८७ में जैन न्यायविद्यावाचना आपकी प्रेरणा से ही बहुत ही आनन्द एवं उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुई थी । इसी प्रकार आपकी ही प्रेरणा से अक्टूबर १९९६ में शाहपुर में 'जैनन्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान' विषय पर राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी उल्लासमय वातावरण में अत्यन्त सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई थी । इस प्रकार जैनन्यायविद्या के प्रचार-प्रसार में पूज्य उपाध्यायश्री का सदा ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । ___यह अत्यन्त हर्ष की बात है कि श्रुत पञ्चमी के दिन १० जून १९९७ को मेरा यह लेखन कार्य सानन्द सम्पन्न हुआ था । मेरी प्रबल इच्छा थी कि जिन परम श्रद्धेय सन्त की प्रेरणा और आशीर्वाद से मैंने इसका लेखन किया है उनके चरणों में बैठ कर इसका वाचन कर लिया जाय तो अच्छा रहेगा, जिससे मेरे लेखन में किसी प्रकार की त्रुटि की सम्भावना न रह सके । पूज्य उपाध्यायश्री भी मेरी बात से सहमत थे । अतः उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन के वाचन की स्वीकृति सहर्ष दे दी । तदनुसार श्री जम्बूस्वामी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चौरासी-मथुरा में परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में तथा प्राचार्य डॉ० प्रकाशचन्द जी दिल्ली, डॉ० फूलचन्द्र जी प्रेमी वाराणसी, डॉ० कमलेशकुमार जी वाराणसी और डॉ० सुरेशचन्द्र जी वाराणसी की उपस्थिति में प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन की वाचना दिनांक २२ से २८ अक्टूबर १९९७ तक सानन्द सम्पन्न हुई । वाचना, का कार्यक्रम प्रतिदिन प्रातःकाल, दोपहर तथा रात्रि में तीन बार चलता रहा । वाचना में विद्वानों के पारस्परिक विचार-विमर्श के बाद प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन को अन्तिम रूप दिया गया । वाचना के मध्य में दो दिन डॉ० भागचन्द्र जी 'भास्कर' नागपुर भी उपस्थित रहे । इससे उनके सुझावों और परामर्श का भी लाभ वाचना को प्राप्त हो गया । - यहाँ यह कहने में परम प्रसन्नता हो रही है कि परम पूज्य उपाध्याय श्री पूरे वाचना काल में दत्तचित्त होकर वाचना को सुनते रहे और
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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