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________________ प्राक्कथन अक्टूबर १९९६ के अन्तिम सम्ताह में शाहपुर (मुजफ्फरनगर) में परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में, 'जैनन्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान' विषय पर एक राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी हुई थी । उक्त अवसर पर यह निश्चय हुआ था कि अब आगामी संगोष्ठी प्रमेयकमलमार्तण्ड पर होगी । इस बात से प्रभावित होकर मेरे मन में प्रमेयकमलमार्तण्ड पर कुछ लिखने का विचार प्रादुर्भाव हुआ और इस कार्य के लिए परम पूज्य उपाध्यायश्री का मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त हो गया । तदनुसार मैंने प्रमेयकमलमार्तण्ड पर कुछ लिखने का प्रयास किया । प्रमेयकमलमार्तण्ड जैनन्याय और जैनदर्शन पर विशद विवेचन करने वाला एक बृहत्काय ग्रन्थ है और इसका मन्थन करके उसमें से मैंने जो सारभूत तत्त्व निकाला है वह यहाँ प्रस्तुत है । इसमें प्रमेय-कमलमार्तण्ड में चर्चित समस्त विषयों का संक्षेप में दिग्दर्शन कराया गया है । इसे हिन्दी भाषा का लघु प्रमेयकमलमार्तण्ड कहा जा सकता है । . श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा में फरवरी १९९७ में सम्पन्न हुए भगवान् चन्द्रप्रभ जिनबिम्ब पञ्च कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के पुनीत अवसर पर श्रीमान् पं० अमृतलाल जी शास्त्री, जैनदर्शनाचार्य, श्रीमान पं० बाबूलालजी फागुल्ल आदि विद्वानों से परामर्श के बाद इस कृति का नाम प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन निश्चित किया गया। मैं इस कार्य में कहाँ तक सफल हुआ हूँ इसका मूल्यांकन तो विज्ञ पाठक ही कर सकते हैं। प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन के लिखने में परम पूज्य उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी महाराज की प्रेरणा तथा मंगल आशीर्वाद ही प्रमुख कारण है । आपने इस कृति पर अपनी मंगल आर्शीर्वादमयी अन्तर्ध्वनि लिखकर मेरा उत्साहवर्द्धन किया है । इस सबके लिए मैं किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त करूँ? मैं तो आपके चरणों में सदा ही नतमस्तक रह कर अपने कल्याण की कामना करता हूँ । तथा आपके मंगल आशीर्वाद एवं प्रेरणा से रचित यह कृति आपके कर कमलों में भक्तिभावपूर्वक सादर समर्पित कर मैं हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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