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________________ ९४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन होता है । अत: अर्हन्त अवस्था में अनन्तचतुष्टय का सद्भाव होने के कारण कवलाहार का अभाव मानना ही श्रेयस्कर है । स्त्रीमुक्ति विचार श्वेताम्बर मतानुयायियों की मान्यता है कि पुरुष की तरह स्त्री भी मोक्ष प्राप्त करने की अधिकारिणी है । वे अनुमान प्रमाण से स्त्रीमुक्ति की सिद्धि करते । स्त्रीमुक्ति साधक अनुमान इस प्रकार है-.. अस्ति स्त्रीणां मोक्षोऽविकलकारणत्वात् । अर्थात् स्त्रियों को मोक्ष होता है, क्योंकि मोक्ष प्राप्त करने के सम्पूर्ण कारण उनमें पाये जाते हैं । उक्त कथन तर्कसंगत नहीं है । क्योंकि स्त्रियों में मोक्ष के कारण ज्ञानादि का परम प्रकर्ष नहीं पाया जाता है । उनमें सप्तम नरक में जाने के कारणभूत पाप का परम प्रकर्ष भी नहीं पाया जाता है । ऐसा नियम है कि: जिस वेद (लिङ्ग) में मोक्ष के हेतुओं का परम प्रकर्ष होता है उस वेद में सप्तम नरक में गमन के कारणभूत पाप का परम प्रकर्ष भी होता ही है । पुरष में ये दोनों बातें पायी जाती हैं । किन्तु इस नियम के विपरीत ऐसा नियम नहीं है कि जिसमें सप्तम नरक में जाने के हेतुओं का परम प्रकर्ष पाया जाता है उसमें मोक्ष के हेतुओं का भी परम प्रकर्ष होता हो । श्वेताम्बर भी इस बात को मानते हैं कि नपुंसक में सप्तम नरक में जाने के हेतुओं का परम प्रकर्ष पाये जाने पर भी मोक्ष के हेतुओं का परम प्रकर्ष नहीं होता है । श्वेताम्बर आगम में भी यह माना गया है कि स्त्री में सप्तम नरक में जाने के कारणभूत पाप का परम प्रकर्ष नहीं होता है । इसी बात को प्रमाण मान कर हम यह कहते हैं कि स्त्री में मोक्ष के कारण ज्ञानादि का परम प्रकर्ष भी नहीं होता है । फिर भी यदि आप स्त्री में मोक्ष के हेतुओं का परम प्रकर्ष मानते हैं तो सप्तम नरक में जाने के हेतुभूत पाप का परम प्रकर्ष भी मानिए । यथार्थ बात यह है कि पुरुष में मोक्ष के हेतु ज्ञानादि का जैसा परम प्रकर्ष पाया जाता है, वैसा परम प्रकर्ष स्त्री में नहीं पाया जाता है । अन्यथा नपुंसक में भी ज्ञानादि का परम प्रकर्ष मानना पड़ेगा और तब नपुसंक को भी मोक्ष का प्रसंग प्राप्त होगा, जो कि दोनों सम्प्रदायों को अनिष्ट है । इस प्रकार स्त्रियों में मोक्ष के अविकल कारणों का सद्भाव सिद्ध नहीं होता है ।
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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