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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन । संसार अवस्था में कर्मों से आच्छादित रहता है । किन्तु कर्ममुक्त जीव अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य इन अनन्तचतुष्टय से सम्पन्न होता है और वह अनन्तकाल तक सिद्धशिला में विराजमान रहता है । तथा वह कभी भी वहाँ से पुनः लौटकर संसार में नहीं आता है । जैनदर्शन की यह विशेषता है कि उसने मुक्त जीव का निवास लोक के अग्रभाग में माना है, किन्तु अन्य किसी दर्शन ने ऐसा नहीं माना है । मोक्ष के साधन
.. प्रायः समस्त दर्शनों ने ज्ञान को मोक्ष का और अज्ञान को बन्ध का अथवा संसार का साधन माना है । किन्तु जैनदर्शन ने सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की पूर्णता को मोक्ष का साधन या मार्ग माना है । सम्यग्दर्शनादि तीनों मिलकर मोक्ष के मार्ग होते हैं, पृथक् पृथक् नहीं । सम्यग्दर्शनादि का प्रारंभ चतुर्थ गुणस्थान से होता है और इनकी पूर्णता चौदहवें गुण स्थान में होती है । तथा उस समय यह जीव कर्मों से सर्वथा मुक्त हो जाता है। मोक्षमार्ग के विषय में तत्त्वार्थसूत्र में बतलाया गया है- . सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।
केवलिभुक्ति विचार ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मों के नष्ट हो जाने पर केवलज्ञान उत्पन्न होता है । और जो पुरुष केवलज्ञान से सम्पन्न होता है उसे केवली, अर्हन्त तथा जीवनमुक्त कहते हैं । यहाँ विचारणीय विषय यह है कि अर्हन्त अवस्था में केवली भगवान् कवलाहार ( ग्रासरूप आहार ) करते हैं या नहीं । श्वेताम्बर मतानुयायियों की मान्यता है कि केवली हम लोगों की तरह कवलाहार करते हैं । यदि ऐसा है तो बुभुक्षाजन्य पीड़ा से आक्रान्त होने के कारण केवली में अनन्तसुख का विरह मानना पड़ेगा । तथा अनन्तसुख का विरह होने से केवली में अनन्तचतुष्टय का सद्भाव कैसे सिद्ध होगा? यह तो श्वेताम्बर भी मानते हैं कि केवली अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य इन अनन्तचतुष्टय से सम्पन्न होता है । यह भी नहीं कहा जा सकता है कि भोजन को सुख के अनुकूल होने के कारण केवली में अनन्तसुख का अभाव नहीं होगा । क्योंकि हम लोगों