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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन ...
जाने पर अनन्तसुखज्ञानादिस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती है । परन्तु ऐसा मानना ठीक नहीं है कि यह जीव मोक्ष में अपनी पृथक् सत्ता को खोकर ब्रह्म में लीन हो जाता है । सब जीवों की सत्ता स्वतन्त्र है और मोक्ष में भी इस जीव की स्वतन्त्र सत्ता पूर्ववत् बनी रहती है ।
बौद्धदर्शन में मोक्ष पूर्वपक्ष
बौद्धदर्शन में आत्मा नामक कोई तत्त्व नहीं है । यहाँ आत्मा के स्थान में विज्ञान की सत्ता स्वीकार की गई है । विज्ञान को चित्त भी कहते हैं । संसार अवस्था में इस विज्ञान की सन्तति चालू रहती है और जब नैरात्म्य के अभ्यास द्वारा इस चित्तसन्तति का निरोध हो जाता है तब चित्तसन्तति के उच्छेद को निर्वाण कहा गया है । इस मत के अनुसार निर्वाण निरोध रूप है । निर्वाण का अर्थ है बुझ जाना । जिस प्रकार दीपक तभी तक जलता रहता है जब तक उसमें तेल और बत्ती का अस्तित्व है । तथा तेल और बत्ती के समाप्त हो जाने पर दीपक स्वतः शान्त हो जाता है । उसी प्रकार नैरात्म्य के अभ्यास द्वारा तृष्णा आदि क्लेशों के समाप्त हो जाने पर चित्तसन्तति भी समाप्त हो जाती है, यही निर्वाण है । इस मत के अनुसार निर्वाण या मोक्ष दुःखाभावरूप है । यह मत बौद्धों के हीनयान सम्प्रदाय का है ।
बौद्धों का एक दूसरा भी मत है जो मानता हैं कि विशुद्ध ज्ञान की उत्पत्ति का नाम मोक्ष है । अर्थात् मोक्ष में ज्ञान की सन्तति का सर्वथा अभाव नहीं होता है, किन्तु वहाँ विशुद्ध ज्ञान का अस्तित्व पाया जाता है । संसार अवस्था में ज्ञान रागादि दोषों से दूषित रहता है और नैरात्म्य आदि विशिष्ट भावना के अभ्यास से रागादि दोषों का विनाश हो जाने पर मोक्ष में विशुद्ध ज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है । अतः मोक्ष अवस्था में विशुद्ध ज्ञान का सद्भाव बना रहता है । यह मत बौद्धों के महायान सम्प्रदाय का है । उत्तरपक्ष
मोक्ष के विषय में बौद्धों की कल्पना दो प्रकार की है-एक हीनयानी कल्पना और दूसरी महायानी कल्पना । मोक्षविषयक हीनयानी कल्पना तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है । चित्तसन्तति के सर्वथा निरोध को निर्वाण कहना तर्कसंगत नहीं है । जब निर्वाण में कुछ भी शेष नहीं