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________________ द्वितीय परिच्छेद : सूत्र ११ मोक्ष का कारण तत्त्वज्ञान को माना गया है । प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह पदार्थों के तत्त्वज्ञान से मिथ्याज्ञान का नाश हो जाता है और मिथ्याज्ञान के अभाव में क्रमशः दोष, प्रवृत्ति, जन्म और दुःख का नाश हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । मिथ्याज्ञान के निवृत्त हो जाने पर मिथ्याज्ञानमूलक रागादि नहीं होते हैं । रागादि के अभाव में रागादि से होने वाली मन, वचन और काय की प्रवृत्ति नहीं होती है और प्रवृत्ति के अभाव में धर्म और अधर्म की उत्पत्ति नहीं होती है । धर्माधर्म के अभाव में पुनर्जन्म नहीं होता है और पुनर्जन्म के अभाव में दुःख का क्षय हो जाता है । यही मोक्ष है । मोक्ष को अपवर्ग भी कहते हैं । पूर्व कर्मों का तथा आरब्ध कर्मों का सुखदुःखरूप फल का क्षय उपभोग से ही होता है । कहा भी है नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि अर्थात् सैकड़ों करोड़ कल्पकाल में भी कर्मफल के उपभोग के बिना कर्मों का क्षय नहीं होता है । कर्मक्षय के विषय में भगवद्गीता में एक दूसरा ही मत बतलाया गया है यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात् कुरुते क्षणात् । ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा ॥ . जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईन्धन को क्षणमात्र में नष्ट में कर देती है उसी प्रकार ज्ञानरूपी अग्नि सब कर्मों को क्षणमात्र में भस्म कर देती है । इसका तात्पर्य यह है कि तत्त्वज्ञानियों के संचित कर्मों का क्षय तत्त्वज्ञान से ही हो जाता है । न्याय-वैशेषिक दर्शन की एक विशेषता यह है कि इस दर्शन के अनुयायी मोक्ष में आत्मा के बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार इन नौ विशेष गुणों का अभाव मानते हैं । वे कहते हैं कि आत्मा के इन नौ विशेष गुणों की सन्तान का मोक्ष में अत्यन्त उच्छेद हो जाता है । न्यायदर्शन और वैशेषिक दर्शन में मोक्ष की मान्यता प्रायः एक जैसी है। उत्तरपक्ष- नैयायिक-वैशेषिकों का उक्त कथन समीचीन नहीं है । उक्त मत के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है स्वरूप की हानि । बुद्धि, सुख आदि को आत्मा के विशेष गुण मानना और मोक्ष में इनका अभाव मानना यह कहाँ
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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