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________________ द्वितीय परिच्छेद : सूत्र ११ और वह्नि में होता । ऐसा तभी संभव है जब आत्मा में सकलदेशवर्ती और सकलकालवर्ती धूम और वह्नि के जानने का स्वभाव हो । * सर्वज्ञ का साधक एक अनुमान और भी है जो इस प्रकार हैसूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः कस्यचित् प्रत्यक्षाः प्रमेयत्वात् पावकादिवत् । सूक्ष्म परमाणु आदि, अन्तरित राम, रावणादि और दूरवर्ती सुमेरु आदि पदार्थ किसी पुरुष के प्रत्यक्ष होते हैं, प्रमेय होने से, अग्नि आदि की तरह । जो भी प्रमेय है वह किसी के प्रत्यक्ष भी होता है । जैसे कि पर्वत के नीचे रहने वाले लोगों के लिए पर्वत में स्थित वह्नि प्रमेय अथवा अनुमेय है, परन्तु पर्वत पर स्थित पुरुष तो उसका प्रत्यक्ष करता ही है । इसीप्रकार जिन सूक्ष्मादि पदार्थों को हम अनुमान से जानते हैं उनको प्रत्यक्ष से जानने वाला कोई पुरुष अवश्य होना चाहिए और जो उनको प्रत्यक्ष से जानता है वही सर्वज्ञ है। ऐसा भी नहीं है कि ज्ञान का अपने विषय में परम प्रकर्ष संभव न हो । ज्ञान का स्वभाव पदार्थों को जानने का है । परन्तु उस पर आवरण होने के कारण वह अपने द्वारा जानने योग्य पदार्थों को नहीं जान पाता है । और जब ज्ञानावरणादि आवरणों की प्रतिपक्षभूतसामग्री सम्यग्दर्शनादि का ‘परम प्रकर्ष हो जाता है तब सम्पूर्ण आवरण के हट जाने पर ज्ञानादि गुणों का भी परम प्रकर्ष हो जाता है । इसी विषय में किसी उच्चकोटि के दार्शनिक ने कितना अच्छा कहा है ज्ञो ज्ञेये कथमज्ञः स्यादसति प्रतिबन्धने । दाह्येऽग्रिहको न स्यादसति प्रतिबन्धने ॥ अर्थात् जब आत्मा का स्वभाव ज्ञेय को जानने का है तो वह प्रतिबन्ध ( आवरण ) के दूर हो जाने पर अज्ञ कैसे रह सकता है ? अर्थात् वह अज्ञ नहीं रह सकता है, वह तो पदार्थों को जानेगा ही । जैसे कि अग्नि का स्वभाव वस्तुओं के दहन करने का है तो वह प्रतिबन्ध के न रहने पर दाह्य वस्तुओं को क्यों नहीं जलायेगी, अवश्य ही जलायेगी । यह दूसरी बात है कि मणि, मन्त्रादि के द्वारा प्रतिबन्धित अग्नि इन्धन को नहीं जला पाती है । इत्यादि प्रकार से हम पहले सामान्य सर्वज्ञ की सिद्धि करते हैं । तदनन्तर हम यह भी कहते हैं कि अर्हन्त भगवान् ही सर्वज्ञ हैं, क्योंकि उनके वचन
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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