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________________ आयारदसा ७६ मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को—“यहाँ शीत अधिक है" ऐसा सोचकर छाया से घूप में तथा “यहाँ गर्मी अधिक है" ऐसा सोचकर घूप से छाया में जाना नहीं कल्पता है। किन्तु जहाँ जैसा (शीत या उष्ण) हो वहाँ वैसे (शीत या उष्ण) को सहन करना चाहिए। सूत्र २५ एवं खलु मासियं भिक्खु-पडिमं । अहासुत्तं, अहाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्चं, सम्म काएणं फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, किट्टइत्ता, आराहित्ता, आणाए अणुपालित्ता भवइ। (१) ___ इस प्रकार (वह मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार) मासिकी भिक्षुप्रतिमा को सूत्र, कल्प और मार्ग के अनुसार यथातथ्य सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर पालन कर (अतिचारों का) शोधन कर कीर्तन और आराधन कर जिनाज्ञा के अनुसार (बिना किसी अन्तर या व्यवधान के) पालन करने वाला होता है। एक मासिकी भिक्षु-प्रतिमा समाप्त । सूत्र २६ दो-मासियं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स निच्चं वोसटुकाए, . तं चेव जाव दो दत्तीओ। (२) शारीरिक सुषमा एवं ममत्वभाव से रहित द्विमासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को...यावत् २ भक्त-पान की दो दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और वह दो मास तक उस प्रतिमा का पालन करता है । सूत्र २७ . ति-मासियं तिण्णि दत्तीओ। (३) त्रिमासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की तीन दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और तीन मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है। १. द० चूर्णों एवं खलु एसा भिक्खुपडिमा । २ दशा० ७, सूत्र ३ और ४ के समान ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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