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छेदसुत्ताणि सूत्र २८
चउ-मासियं चत्तारि दत्तीओ। (४)
चतुर्मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की चार दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और चार मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है।
सूत्र २६
पंच-मासियं पंच दत्तीओ। (५)
पंचमासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और पांच मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है। सूत्र ३०
छ-मासियं छ दत्तोओ। (६) षण्मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की छः दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और छः मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है । सूत्र ३१
सत्त-मासियं सत्त दत्तीओ। (७) . जत्थ जत्तिया. मासिया तत्थ तत्तिआ दत्तीओ।
सप्तमासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को भक्त-पान की सात दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है और सात मास तक वह उसका यथाविधि पालन करता है ।' जो प्रतिमा जितने मासकी हो उसमें उतनी ही भक्त-पान की दत्तियां ग्रहण की जाती हैं।
सूत्र.३२
पढमं सत्त-राइं-दियं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्सअणगारस्स निच्चं वोसट्टकाए जाव-अहियासेइ ।
१ शेष वर्णन सूत्र ५ से सूत्र २५ तक के समान समझना चाहिए. अर्थात् एकमासिकी भिक्षु
प्रतिमा के समान उक्त प्रतिमाओं का पालन किया जाता है |