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आयारदसा -
८१
कपइ से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव - रायहाणिए
वा उत्ताणस्स पासिल्लगस्स वा नेसिज्जयस्स वा ठाणं ठाइत्तए ।
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तत्थ से दिव्व- माणुस - तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा,
ते णं उवसग्गा पयलिज्ज वा पवडेज्ज वा,
से कप पत्ति वा पवत्तिए वा ।
तत्थ णं उच्चार- पासवणेणं उब्बाहिज्जा, णो से कप्पइ उच्चार- पासवणं उगिण्हित्तए वा ।
कप्पइ से पुव्व पडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चार- पासवणं परिठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए ।
एवं खलु पढमं सत्त-राईदियं भिक्खु-पडिमं
अहासु जाव आणा अणुपालित्ता भवइ ।
(5)
शारीरिक सुषमा एवं ममत्वभाव से रहित प्रथम सप्तरात्रिदिवा भिक्षुप्रतिमा प्रतिपन्न अनगार... यावत् '... शारीरिक क्षमता से उन्हें झेलता है । निर्जल चतुर्थभक्त (उपवास) के पश्चात् भक्त-पान ग्रहण करना कल्पता है ।
ग्राम यावत् राजधानी के बाहिर (उक्त प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को) उत्ता - 'नासन, पाश्र्वासन या निषद्यासन, इन तीन आसनों में से किसी एक आसन से कायोत्सर्ग करके स्थित रहना चाहिए ।
वहाँ (प्रतिमा आराधन काल में ) यदि दिव्य, मानुषिक या तिर्यग्योनिक उपसर्ग हों और वे उपसर्ग उस अनगार को ध्यान से विचलित करें या पतित करें तो उसे विचलित होना या पतित होना नहीं कल्पता है ।
यदि मल-मूत्र की बाधा उत्पन्न तो उसे रोकना नहीं कल्पता है, किन्तु पूर्व प्रति लेखित भूमिपर मल-मूत्र त्यागना कल्पता है ।
पुनः यथाविधि अपने स्थान पर आकर उसे कायोत्सर्ग कर स्थित रहना चाहिए |
इस प्रकार वह अनगार प्रथम सात दिन-रात की भिक्षु प्रतिमा का यथासूत्र ..... यावत् ... जिनाज्ञा के अनुसार (बिना किसी अन्तर या व्यवधान के) पालन करने वाला होता है ।
१ दशा० ७, सूत्र ३ के समान ।
दशा० ७, सूत्र ७ का एक अंश ।
२
३ दशा० ७, सूत्र २५ के समान