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आयारदसा
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मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को सचित्त पृथ्वी पर निद्रा लेना या ऊंघना नहीं कल्पता है।
केवली भगवान ने सचित्त पृथ्वी पर नींद लेने या ऊंघने को कर्मबंध का कारण कहा है। __वह अनगार सचित्त पृथ्वी पर नींद लेता हुआ या ऊंघता हुआ अपने हाथों से भूमि का स्पर्श करेगा (और उससे पृथ्वी काय के जीवों की हिंसा होगी) अतः उसे यथाविधि (सूत्रोक्तविधि) से निर्दोष स्थान पर ठहरना चाहिए या निष्क्रमण करना चाहिए।
यदि अनगार को मल-मूत्र की बाधा हो जाए तो रोकना नहीं चाहिए, किन्तु पूर्व प्रतिलेखित भूमि पर त्याग करना चाहिए। और पुनः उसी उपाश्रय में आकर यथाविधि निर्दोष स्थान पर ठहरना चाहिए ।
सूत्र २१
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्सनो कप्पति ससरक्खेणं कारणं गाहावइ-कुलं भत्तए वा पाणए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । अह पुण एवं जाणेज्जा - ससरक्खे से अत्ताए वा जल्लत्ताए. वा मल्लत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे, से कप्पति गाहावइ-कुलं भत्तए वा पाणए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को सचित्त रजयुक्त काय से गृहस्थों के गृह-समुदाय में भक्त-पान के लिए निष्क्रमण और प्रवेश करना नहीं कल्पता है । ___ यदि यह ज्ञात हो जाये कि शरीर पर लगा हुआ सचित्त रज स्वेद, शरीर पर लगे हुए मेल या पंक (प्रस्वेद) से अचित्त हो गया है तो उसे गृहस्थों के गृह समुदाय में भक्त-पान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है।
विशेषार्थ प्रस्तुत सूत्र में “सचित्त रजयुक्त काय" का उल्लेख हैउसका अभिप्राय यह है कि भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार जिस उपाश्रय में ठहरा हुआ हो और उसके समीप ही किसी खान से मिट्टी खोदी जा रही हो तो वह सचित्त रज उड़कर अनगार के काय पर लग जाती है, अतः “सचित्त रज युक्त काय” से गोचरी के लिए घरों में जाने का यहाँ निषेध है, किन्तु शरीर पर पसीना बह रहा हो उस समय शरीर पर लगी हुई सचित्त रज अचित्त हो जाती है अथवा शरीर के मेल पर लगी हुई सचित्त रज भी अचित्त हो जाती है तब वह अनगार गोचरी के लिए गृहस्थों के घरों में आ जा सकता है।