SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आयारदसा ४५ है अर्थात् त्याग नहीं करता है। इसी प्रकार यावत् सर्व प्रकार के क्रोध से, सर्व प्रकार के मान से, सर्व प्रकार की माया से, सर्व प्रकार के लोभ से, सर्व प्रकार के प्रेय (राग) से, सर्व प्रकार के द्वष से, सर्व प्रकार के कलह से, (परस्पर झगड़ा करने से) सर्वप्रकार के अभ्याख्यान से (दूसरों को असत्य दोष लगाकर कलंकित करने से) सर्वप्रकार के पैशुन्य से (चुगली करने से) सर्व प्रकार के पर-परिवाद (लोगों का पीठ पीछे अपवाद) करने से, सर्वप्रकार की रति (इष्ट पदार्थों के मिलने पर प्रसन्नता) और अरति (इष्ट पदार्थों के नहीं मिलने पर अप्रसन्नता) से और सर्वप्रकार की माया-मृषा (छलपूर्वक असत्यभाषण) करने और वेष-भूषा बदलकर दूसरों को ठगने) से, तथा सर्वप्रकार के मिथ्यादर्शन शल्य से यावज्जीवन अविरत रहता है अर्थात् जन्म भर उक्त १८ पाप-स्थानों का सेवन करता रहता है। सत्र ७ सव्वाओ कसाय-दंतकट्ठ-हाण-मद्दण-विलेवण-सद्द-फरिस - रस-रूव - गंधमल्लालंकाराओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ संगड-रह-जाण-जुग-गिल्लि-थिल्लि-सीया-संदमाणिया-सयणासणजाण-वाहण-भोयण-पवित्थरविहिओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ आस-हत्थि-गो-महिस-गवेलय-दास-दासी-कम्मकर-पोरुस्साओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; ' सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्ध-मासरूपग-संववहाराओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धन्न-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ करण-करावणाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; सव्वाओ कुट्टण-पिट्टणाओ तज्जण-तालणाओ वह-बंध-परिकिलेसाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए; जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मा पर-पाण-परियावण-कडा • कज्जति ततो वि य अप्पडिविरए जावज्जीवाए। वह नास्तिक मिथ्यादृष्टि सर्वप्रकार के कषाय रंग के वस्त्र, दन्तकाष्ठ (दातुन-दन्तधावन) स्नान, मर्दन, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, माला और अलंकारों (आभूषणों) से यावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है। वह सर्वप्रकार
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy