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सूत्र ५
"हण, छिंद, भिद" विकत्तए,
लोहियपाणी, चंडे, रुद्द, खुद्दे, असमिक्खियकारी, साहस्सिए, उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड- कवड-साइ- संपओग-बहुले,
छेदत्ताणि
दुस्सीले दुष्परिच, दुच्चरिए, दुरणुणेए, दुव्वए, दुप्पडियाणंदे, निस्सीले निव्वए, निग्गुणे, निम्मेरे, निष्पच्चक्खाण-पोसहोववासे, असाहू ।
वह मिथ्यादृष्टि नास्तिक आजीविका के लिए दूसरों से कहता है जीवों को मारो, उनके अंगों का छेदन करो, शिर पेट आदि का भेदन करो, काटो, ( इसका अन्त करो, वह स्वयं जीवों का अन्त करता है) उसके हाथ रक्त से रंगे रहते हैं, वह चण्ड, रौद्र और क्षुद्र होता है, असमीक्षित ( बिना विचारे) कार्य करता है, साहसिक होता है, लोगों से उत्कोच ( रिश्वत - घूस ) लेता है, प्रवचन, माया, निकृति ( छल) कूट, कपट और सातिसम्प्रयोग (माया जाल रचने) में बहुत कुशल होता है ।
वह दुःशील होता है, दुष्टजनों से परिचय रखता हैं, दुश्चरित होता है, दुनेय (दारुणस्वभावी) होता है, हिंसा - प्रधान व्रतों को धारण करता है, दुष्प्रत्यानन्द ( दुष्कृत्यों को करने और सुनने से आनन्दित ) होता है - अथवा उपकारी के साथ कृतघ्नता करके आनन्द मानता है, शील-रहित होता है, व्रतरहित होता है, प्रत्याख्यान (त्याग) और पौषधोपवास नहीं करता है, अर्थात् श्रावक व्रतों से रहित होता है और असाधु है, अर्थात् साधुव्रतों का पालन नहीं करता है ।
सूत्र ६
सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए,
जाव - सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए,
एवं जाव - सव्वाओ कोहाओ, सव्वाओ माणाओ, सव्वाओ मायाओ, सव्वाओ लोभाओ, सव्वाओ पेज्जाओ, सव्वाओ दोसाओ, सव्वाओ कलहाओ, सव्वाओ अब्भक्खाणाओ, सव्वाओ पिसुण्णाओ, सव्वाओ परपरिवायाओ, सव्वाओ अरइ-रइ-मायामोसाओ सव्वाओ मिच्छादंसणसल्लाओ, अप्पडिविरए जावज्जीवाए ।
वह यावज्जीवन सर्वप्रकार के प्राणातिपात ( जीव - घात) से अप्रतिविरत रहता है अर्थात् सभी प्रकार की जीव हिंसा करता है, इसी प्रकार यावत् (सर्व प्रकार के मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन - सेवन और ) परिग्रह से अप्रतिविरत रहता