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आयारदसा
णत्थि सुकड - दुक्कडाणं फल-वित्ति-विसेसो, सुचिणा कम्मा सुचिण्णाफला भवंति, णो दुचिण्णा कम्मा दुच्चिरणाफला भवंति
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अफले कल्ला - पावए, णो पच्चायंति जीवा
णत्थि णिरयादि ( णिरयगई, तिरियगई, मणुस्सगई, देवगई), णत्थि सिद्धी से एवं वादी, एवं- पणे, एवं दिट्ठी, एवं छंद- रागाभिनिविट्ठे यावि भवइ ।
जो अक्रियावादी है, अर्थात् जीवादि पदार्थों के अस्तित्व का अपलाप करता है, नास्तिकवादी है, नास्तिक बुद्धिवाला है, नास्तिक दृष्टि रखता है जो सम्यवादी नहीं है, नित्यवादी नहीं है अर्थात् क्षणिकवादी है, जो परलोकवादी नहीं है । जो कहता है कि इहलोक नहीं है, परलोक नहीं है, माता नहीं है, पिता नहीं है, अरिहन्त नहीं है, चक्रवर्ती नहीं है, बलदेव नहीं हैं, वासुदेव नहीं हैं, नरक नहीं हैं, नारकी नहीं हैं, सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का फलवृत्ति विशेष नहीं है, सुचीर्ण ( सम्यक् प्रकार से आचरित) कर्म, सुचीर्ण (शुभ) फल नहीं देते हैं और दुश्चीर्ण ( कुत्सित प्रकार से आचरित) कर्म, दुश्चीर्ण (अशुभ) फल नहीं देते हैं, कल्याण (शुभ) कर्म और पाप कर्म फलरहित हैं, जीव परलोक में जाकर उत्पन्न नहीं होते, नरकादि ( नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये) चार गतियां नहीं हैं, सिद्धि (मुक्ति) नहीं है । जो इस प्रकार कहने वाला है, इस प्रकार की प्रज्ञा (बुद्धि) वाला है, इस प्रकार की दृष्टिवाला है, और जो इस प्रकार के छन्द ( इच्छा या लोभ) और राग ( तीव्र अभिनिवेश या ग्रह) से अभिनिविष्ट ( सम्पन्न ) है, वह मिथ्यादृष्टि जीव है ।
सूत्र ४
से भवति महिच्छे, महारंभे, महापरिग्गहे, अहम्मिए, अहम्मानुए, अहम्मसेवी, अहम्मिट्ठ े, अहम्मवखाइ, अहम्मरागी अहम्मपलोई, अहम्मजीवी, अहम्म- पलज्जणे, अहम्म-सील समुदायारे, अहम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ।
ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव महा इच्छा वाला, महारम्भी, महापरिग्रही, अधार्मिक, अधर्मानुगामी, अधर्मसेवी, अधर्मिष्ठ, अधर्म- ख्यातिवाला, अधर्मानुरागी, अधर्मद्रष्टा, अधर्मजीवी, अधर्म में अनुरक्त रहने वाला, अधार्मिक शील-स्वभाववाला, अधार्मिक आचरणवाला और अधर्म से ही आजीविका करता हुआ विचरता है ।