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________________ आयारदसा ३५ सूत्र ५ जियसत्तू राया। तस्स धारणी नामं देवी। एवं सव्वं समोसरणं भाणियव्वं जाव-पुढवि-सिलापट्टए सामी समोसढे । परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। वहां का राजा जित शत्रु था। उसकी धारणी नामकी देवी थी। इस प्रकार सर्व समवसरण कहना चाहिए। यावत् पृथ्वी-शिलापट्टक पर वर्धमान स्वामी विराजमान हुए। (धर्मोपदेश सुनने के लिए) मनुष्यपरिषद निकली । भगवान ने (श्रुत-चारित्र रूप) धर्म का निरूपण किया । परिषद वापिस चली गई। सूत्र ६ 'अज्जो ! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-- "इह खलु अज्जो ! निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा इरिया-समियाणं, भासा-समियाणं एसणा-समियाण, आयाण-भंड-मत्त:निक्खेवणा-समियाणं, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जस्ल-पारिट्ठवणिया-समियाणं मण-समियाणं, वय-समियाणं, काय-समियाणं, मण-गुत्तीणं, वय-गुत्तीणं, काय-गुत्तीणं, गुत्तिदियाणं, गुत्तबंभयारीणं, आयट्रीणं,आयहियाणं, आय-जोईणं, आय-परक्कमाणं, पक्खिय-पोसहिएसु समाहिपत्ताणं झियायमाणाणं इमाइ दस चित्त-समाहि-ठाणाई असमुप्पण्णपुव्वाइ समुप्पज्जेज्जा : - तं जहा- .. . १ धम्मचिता वा से असमुप्पण्णपुव्वा समुप्पज्जेज्जा, सव्वं धम्मं जाणित्तए, २ सण्णि-जाइ-सरणेणं सण्णि-णाणं वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा, अप्पणो पोराणियं जाइ सुमरित्तए। - ३ सुमिणदसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा, अहातच्च सुमिणं पासित्तए। ४ देवदंसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा, दिव्वं देविद्धि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पासित्तए। . .
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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