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१ उवगरण - उप्पायणया,
३ वण्ण-संजलणया,
इस प्रकार के गुणवान् अन्तेवासी शिष्य की यह चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति होती है । जैसे—
२ साहिल्ला, ४ भार - पच्चोरुहणया ।
१ उपकरणोत्पादनता - संयम के साधक वस्त्र - पात्रादि का प्राप्त करना । २ सहायता अशक्त साधुओं की सहायता करना ।
३ वर्ण संज्वलनता - गण और गणी के गुण प्रकट करना ।
४ भारप्रत्यवरोहणता - गण के भार का निर्वाह करना ।
सूत्र २१
प्र० - से किं तं उवगरण - उप्पायणया ? उ० – उवगरण - उप्पायणया चउव्विहा पण्णत्ता,
३ परितं जाणित्ता पच्चद्धरित्ता भवइ,
४ अहाविहि संविभत्ता भवइ ।
से तं उवगरण उप्पायणया ।
१ अणुप्पण्णाणं उवगरणाणं उप्पाइत्ता भवइ,
२ पोराणाणं उवगरणाणं सारक्खित्ता संगवित्ता भवइ,
छेदत्ताणि
जहा
सूत्र २२
प्रश्न - भगवन् ! उपकरणोत्पादनता क्या है ।
उत्तर - उपकरणोत्पादनता चार प्रकार की कही गई है । जैसे
१ अनुत्पन्न उपकरण उत्पादनता नवीन उपकरणों को प्राप्त करना ।
२ पुरातन उपकरणों का संरक्षण और संगोपन करना ।
३ जो उपकरण परीत (अल्प ) हों उनका प्रत्युद्धार करना अर्थात् अपने गण के या अन्य गण से आये हुए साधु के पास यदि अल्प उपकरण हो, या सर्वथा न हो तो उनकी पूर्ति करना ।
४- शिष्यों के लिए यथायोग्य विभाग करके देना ।
यह उपकरणोत्पादनता है ।
प्र० - से किं तं साहिल्लया ?
उ०- साहिल्लया चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा