SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आयारसा १ अणुलोम-वइ-सहिते यावि भवइ, • २ अणुलोम-काय-किरियत्ता यावि भवइ, ३ पडिरूव-काय-संफासणया यावि भवइ, ४ सव्वत्थेसु अपडिलोमया यावि भवइ । से तं साहिल्लया। प्रश्न-भगवन् ! सहायताविनय क्या है । उत्तर - सहायताविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१ अनुलोम (अनुकूल) वचन-सहित होना। अर्थात् जो गुरु कहें उसे विनयपूर्वक स्वीकार करना। . २ अनुलोम काय की क्रिया वाला होना। अर्थात् - जैसा गुरु कहे वैसी काय की क्रिया करना। ३ प्रतिरूप काय संस्पर्शनता-गुरु की यथोचित सेवा-सुश्रूषा करना। ४ सर्वार्थ-अप्रतिलोमतां- सर्वकार्यों में कुटिलता-रहित व्यवहार करना । यह सहायताविनय है। सूत्र २३ प्र० से किं तं वण्ण-संजलणया ? उ०-वण्ण-संजलणया चउन्विहा पण्णत्ता । तं जहा ... १ अहातच्चाणं वण्ण-वाई भवइ, २ अवण्णवाइपडिहणित्ता भवइ, ३ वण्णवाई अणुहित्ता भवइ, ४ आय वुड्ढसेवी यावि भवइ । से तं वण्ण-संजलणया । प्रश्न-भगवन् ! वर्णसंज्वलनताविनय क्या है ? उत्तर-वर्णसंज्वलनता विनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे १ यथातथ्य गुणों का वर्णवादी (प्रशंसा करने वाला) होना। २ अवर्णवादी (अयथार्थ दोषों के कहने वाले) को निरुत्तर करने वाला होना। ३ वर्णवादी के गुणों का अनुवृहण (संवर्धन) करना । ४ स्वयं वृद्धों की सेवा करना । यह वर्णसंज्वलनताविनय है।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy