________________
आयारदसा
२६
प्रश्न-भगवन् ! विक्षेपणाविनय क्या है ? उत्तर ----विक्षेपणाविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१ अदृष्टधर्मा को अर्थात् जिस शिष्य ने सम्यक्त्वरूपधर्म को नहीं जाना है,
उसे उससे अवगत कराके सम्यक्त्वो बनाना । २ दृष्टधर्मा शिष्य को सार्मिकता-विनीत (विनयसंयुक्त) करना। ३ धर्म से च्युत होने वाले शिष्य को धर्म में स्थापित करना। ४ उसी शिष्य के धर्म के हित के लिए, सुख के लिए, सामर्थ्य के लिए, मोक्ष के लिए और अनुगामिकता अर्थात् भवान्तर में भी धर्मादिकी प्राप्ति के किए अभ्युद्यत रहना।
यह विक्षेपणाविनय है। सूत्र १६
प्र०—से कि तं दोस-निग्घायणा-विणए ? उ०-दोस-निग्घायणा-विणए चउन्विहे पण्णत्ते । तं जहा- . १ कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवइ, २ दुट्टस्स दोसे णिगिण्हित्ता भवइ, ३ कंखियस्स कंखं छिदित्ता भवइ, ४ आय-सुपणिहिए. यावि भवइ । से तं दोस-निग्घायणा-विणए। (४) प्रश्न- भगवन् ! दोषनिर्धातनाविनय क्या है ? उत्तर-दोषनिर्घातनाविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१ क्रुद्ध व्यक्ति के क्रोध को दूर करना । २ दुष्ट व्यक्ति के दोष को दूर करना । ३ आकांक्षा वाले व्यक्ति की आकांक्षा का निवारण करना । ४ आत्मा को सुप्रणिहित रखना अर्थात् शिष्यों को सुमार्ग पर लगाये रखना। यह दोषनिर्घातना विनय है।
सूत्र २०
तस्स णं एवं गुणजाइयस्स' अंतेवासिस्स इमा चउव्विहा विणय-पडिवत्ती भवइ । तं जहा
१ आ० घा० प्रत्योः 'तस्सेव गुणजाइयस्स' पाठः ।