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________________ १२२ छेदसुत्ताणि - एवं से कप्पइ अपच्छिम-मारणंतिय संलेहणा-असणा मूसिए-जाव-धम्म जागरियं वा जागरित्तए। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अपच्छिम-मारणंतिय संलेहणा दूसणा ग्रूसिए-जाब-धम्म जागरियं वा जागरित्तए। से किमाह भंते ! आयरिया पच्चवायं जाणंति ।८/६५ वर्षावास रहा हुआ भिक्षु मरण-समय समीप आने पर संलेखना द्वारा कर्म क्षय करना चाहे, भक्तप्रत्याख्यान (आहार का त्याग) करना चाहें, कटे हुए पादप (वृक्ष) के समान एक पाश्र्व से शयन करके मृत्यु की कामना नहीं करता हुआ रहना चाहे, (उपाश्रय से) निष्क्रमण-प्रवेश करना चाहे,' अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थों का आहार करना चाहे, मल-मूत्र त्यागना चाहे, . . स्वाध्याय करना चाहे, और धर्म जागरणा करना चाहें तो आचार्य यावत् गणावच्छेदक इनमें से जिसको अगुआ मानकर वह विचर रहा हो-उन्हें पूछे बिना उक्त सभी कार्य करना नहीं कल्पता है। किन्तु आचार्यादि को पूछ करके ही उक्त सभी कार्य करना कल्पता है। यदि आचार्यादि आज्ञा दें तो सूत्रोक्त सभी कार्य करना कल्पता है। यदि आचार्यादि आज्ञा न दें तो सूत्रोक्त सभी कार्य करने नहीं कल्पते हैं। प्रश्न- हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा? उत्तर-आचार्यादि आने वाली विघ्न बाधाओं को जानते हैं। वस्त्राऽऽतपन-भक्तग्रहण-कायोत्सर्गादौ अनुमति ग्रहणरूपा अष्टादशी समाचारी सूत्र ६६ __ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अण्णरि वा, उवहिं आयावित्तए वा, पयावित्तए वा। ____नो से कप्पइ एगं वा, अणेगं वा अपडिण्णवित्ता गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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