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________________ आयारदसा पन्द्रहवीं सप्त स्नेहायतन - रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को वर्षा के जल से स्वयं का शरीर गीला हो या वर्षा का जल स्वयं के शरीर से टपकता हो तो अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार करना नहीं कल्पता है । हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा ? शरीर पर पानी टिकने के सात स्थान कहे गये हैं । यथा २ हाथ की रेखाएं, ४ नख के अग्रभाग, १. हाथ और ३ नख और ५ भौंह (आँखों के ऊपर के बाल ), ६ होठ के नीचे और ७ होठ के ऊपर यदि वह ऐसा जाने कि मेरे शरीर से वर्षा का जल नितर गया है अथवा वर्षा का जल सूख गया है तो उसे अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार करना कल्पत है। विशेषार्थ- - इस सूत्र में वर्षा जल के ठहरने के सात स्थानों में मस्तक का नाम नहीं है; इसका कारण यह प्रतीत होता है कि वर्षा काल में मस्तक ढके बिना साधु को बाहर निकलना नहीं कल्पता है अतः मस्तक का उल्लेख नहीं है । होठ के ऊपर का अभिप्राय मूंछ से है । होठ के नीचे का अभिप्राय डाढ़ी के बालों से है । १११ सूक्ष्माष्टक यतना स्वरूपा षोडशी समाचारी + सूत्र ५० वासावासं पज्जोसंवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा, इमाई अट्ठ सुहुमाई जाई छउमत्थेणं निग्गंथेण वा, निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं . जाणियव्वाइं पासियव्वाइं पडिलेहियव्वाइं भवंति, तं जहा १ पाणसुम, २ पणगसुहुमं, ३ बीअसुहमं, ४ हरियसुहुमं, ५ पुप्फसुहुमं, ६ अंडसुमं, ७ लेणसुहुमं, ८ सिणेहसुहुमं । ८ / ५० सोलहवीं सूक्ष्माष्टक यतना- रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के ये आठ सूक्ष्म बार-बार जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन करने योग्य हैं, यथा १. प्राणी सूक्ष्म, २. पनक सूक्ष्म, ३. बीज सूक्ष्म, ४. हरित सूक्ष्म, ५. पुष्प सूक्ष्म, ६. अण्ड सूक्ष्म, ७. लयन सूक्ष्म, और ८. स्नेह सूक्ष्म ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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