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________________ छेदसुत्ताणि से किमाहु भंते ! इच्छा परो अपरिग्णए भुंजिज्जा, इच्छा परो न भुंजिज्जा ।८/४८ चौदहवीं ग्लान-परिचर्या-रूपा समाचारी । वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को ग्लान भिक्षु की सूचना के बिना या उसे पूछे बिना अशन, पान, खाद्य-स्वाद्य यावत् ग्रहण करना नहीं कल्पता है।' प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा___ उन्नर-ग्लान की इच्छा हो तो वह अपरिज्ञात आहार भोगे, इच्छा न हो तो न भोगे। _ विशेषार्थ-इस सूचना का अभिप्राय यह है कि ग्लान साधु की सूचना के बिना या उसे पूछे बिना जो आहार उसके निमित्त से लाया गया है वह यदि ग्लान भिक्षु नहीं खाएगा तो परठना पड़ेगा। किन्तु वर्षा काल में परठने के लिए प्रासुक भूमि प्रायः कठिनाई से मिलती है और अप्रासुक भूमि में परठने से जीवों की विराधना होती है। . यदि ग्लान साधु अनिच्छा से उस आहार को खाएगा तो उसे अजीर्ण आदि होने की सम्भावना रहेगी । इसलिए वैयावृत्य करने वाला साधु ग्लान साधु की सूचना मिलने पर या उसे पूछकर ही उसके लिए आहार लावे अन्यथा नहीं लावे। सप्तस्नेहाऽऽयतनरूपा पञ्चदशी समाचारी सूत्र ४६ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा उदउल्लेण वा, ससिणिद्धण वा काएणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारित्तए। से किमाहु भंते ! सत्त सिहाययणा पण्णत्ता, तंजहा१ पाणी, २ पाणिलेहा, ३ नहा, ४ नहसिहा, ५ भमुहा, ६ अहरोट्ठा, ७ उत्तरोट्ठा। अह पुण एवं जाणिज्जा-विगओदगे मे काए छिन्नसिनेहे.. एवं से कप्पइ असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारित्तए। 1८/४९
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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