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________________ आया रसा १०६ सूत्र ४६ वासावासं पज्जो सवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविटुस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा, atus से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्तयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए । तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स, एगाए य अगारीए एगयओ चिट्ठित्तए । एवं चभंगी । अत्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे वा, थेरियाई वा अन्नसि वा संलोए सपडदुवारे... एवं कप्पर एगयओ चिट्ठित्तए १८/४६ वर्षावास रहा हुआ निर्ग्रन्थ गृहस्थों के घरों में आहार के लिए गया हुआ हो और लौटकर उपाश्रय की ओर आ रहा हो उस समय रुक-रुक कर वर्षा आने लगे तो उसे आरामगृह, उपाश्रय, विकटगृह या वृक्ष के नीचे आकर ठहरना कल्पता है | (१) किन्तु वहाँ अकेले निर्ग्रन्थ को अकेली स्त्री के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (२) अकेले निर्ग्रन्थ को दो स्त्रियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (३) दो निर्ग्रन्थों को अकेली स्त्री के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (४) दो निर्ग्रन्थों को दो स्त्रियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । यदि वहाँ पर पाँचवा स्थविर पुरुष या स्थविर स्त्री हो अथवा वह स्थान आने-जाने वालों को स्पष्ट दिखाई देता हो और अनेक द्वार वाला हो तो जब तक वर्षा होती रहे तब तक उस साधु को स्त्रियों के साथ एक स्थान में एक साथ ठहरना कल्पता है । सूत्र ४७ एवं चेव निग्गंथीए अगारस्स य भाणियव्वं १८ / ४७ इसी प्रकार निर्ग्रन्थी और गृहस्थ पुरुष की चौभंगी भी कहलानी चाहिये । अपरिज्ञप्तार्थमशनाद्यानयननिषेधरूपा चतुर्दशी समाचारी सूत्र ४८ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथोण वा अपरिori अपरिणयस्स अट्ठाए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा; साइमं वा जाव पडिगाहित्तए ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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