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छेदत्ताणि
टीकाकार ने इसमें आत्म-विराधना और संयम - विराधना की सम्भावना दिखाते हुए कहा है – साधु या साध्वी को एकाकी ( अकेला ) देखकर कोई भी किसी भी प्रकार का उपद्रव कर सकता है तथा साथ वाले अन्य साधु या साध्वी उसके नहीं पहुँचने पर चिन्ता करेंगे, अतः सूर्यास्त होने तक साधु या साध्वी को उपाश्रय में पहुँच ही जाना चाहिए ।
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सूत्र ४५
वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स वा, निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडिया अणुपविट्ठस्स निगिज्झय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा,
कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्मूलंसि वा उवागच्छित्तए ।
तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स, एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्ठित्तए । (१)
तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स, दुण्हं निग्गंथोणं एगयओ चिट्टित्तए । ( २ ) तत्थ नो कप्पइ दुहं निग्गंथाणं, एगाए य निरगंथीए एगयओ चित्त । (३)
तत्थ नो कप्पइ दुहं निग्गंथाणं, दुण्हं निग्गंथोणं य एगयओ चिट्ठित्तए । ( ४ ) अथ य इत्थ के पंचमे खुड्डए वा खुड्डियाइ वा अन्नेसि वा संलोए सपडदुवारे एवं णं कप्पs एगयओ चिट्ठित्तए १८ / ४५
वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियाँ गृहस्थों के घरों में आहार के लिए गए हुए हों और लौटकर उपाश्रय की ओर आ रहे हों उस समय रुक-रुक कर वर्षा आने लगे तो उन्हें आराम-गृह, उपाश्रय, विकटगृह या वृक्ष के नीचे आकर ठहरना कल्पता है ।
(१) किन्तु वहाँ अकेले निर्ग्रन्थ को अकेली निर्ग्रन्थी के साथ ठहरना नहीं कल्पता है ।
(२) अकेले निर्ग्रन्थ को दो निर्ग्रन्थियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (३) दो निर्ग्रन्थों को अकेली निर्ग्रन्थी के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (४) दो निर्ग्रन्थों को दो निर्ग्रन्थियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । यदि वहाँ पर पाँचवाँ व्यक्ति स्त्री या पुरुष हो अथवा वह स्थान आने-जाने.
वालों को स्पष्ट दिखाई देता हो और अनेक बरसती रहे, तब तक उन साधु-साध्वियों को कल्पता है ।
द्वार वाला हो तो जब तक वर्षा एक स्थान में एक साथ ठहरना