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आयारदसा
जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए । जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए । ८ / ४३
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गृहस्थ के घर में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के आगमन से पूर्व दाल और चावल दोनों रंधे हुए हों तो दोनों लेने कल्पते हैं । किन्तु बाद में रँधे हों तो दोनों लेने नहीं कल्पते हैं ।
( तात्पर्य यह है कि ) निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के आगमन से पूर्व जो आहार निष्पन्न हो वह लेना कल्पता है और जो आगमन के पश्चात् निष्पन्न हो वह ना नहीं कल्पता है ।
सूत्र ४४
वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्सं वा, निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवापडिया अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झय वुट्टिकाए निवइज्जा,
कप्प से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए ।
नो से कप पुव्वगहिणं भत्त-पाणेणं वेलं उवायणावित्तए ।
nous से पुव्वामेव वियडगं भुच्चा, पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संलिहिय संपमज्जिय संपमज्जिय एगाययं भंडगं कट्टु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए ।
नो से कप्पइ तं रर्याणि तत्थेव उवायणावित्तए । ८ / ४४
वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियाँ गृहस्थों के घरों में आहार के लिए गये हुए हों और लौटकर उपाश्रय आते समय रुक-रुक कर वर्षा आने लगे तो उन्हें आराम- गृह, उपाश्रय, विकट गृह और वृक्ष के नीचे आकर ठहरना कल्पता 1. है, किन्तु पूर्व गृहीत भक्त-पान से भोजन वेला का अतिक्रमण करना नहीं कल्पता है ।
( अर्थात् सूर्यास्त पूर्व) निर्दोष आहार खा-पीकर पात्रों को धोकर पोंछकर और प्रमार्जन कर एकत्रित करे तथा सूर्य के रहते हुए जहाँ उपाश्रय हो वहाँ आ जाए किन्तु वहाँ रात रहना नहीं कल्पता है ।
विशेषार्थ - साधु या साध्वी जिस उपाश्रय से गोचरी के लिए निकलें, यदि वर्षा होने के कारण दिन में अन्यत्र ठहरना पड़े तो भी उन्हें सायंकाल तक उसी . उपाश्रय में आ जाना चाहिए। चूंकि उपाश्रय से बाहर रात में रहना वर्षाकाल में सर्वथा निषिद्ध है ।