SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ छेदसुत्ताणि सूत्र ४० __वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स वा, निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा। ___ कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए। ८/४० वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियाँ गृहस्थों के घरों में आहार के लिए गये हुए हों, या लौटकर उपाश्रय आ रहे हों उस समय रुक-रुक कर वर्षा आने लगे तो (मार्ग में) आरामगृह, उपाश्रय, आच्छादित गृह या वृक्ष के नीचे ठहरना कल्पता है। . (वर्षा रुकने पर गोचरी के लिए जावे या उपाश्रय में आ जावे) सूत्र ४१ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए । ८/४१ ' गृहस्थ के घर में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के आगमन से पूर्व चावल रंधे हुए हों और दाल पीछे से रंधे तो चावल लेना कल्पता है, किन्तु दाल लेना नहीं कल्पता है। सूत्र ४२ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे, पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए । ८/४२ गृहस्थ के घर में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के आगमन से पूर्व दाल रँधी हुई हो और चावल पीछे से रँधे तो दाल लेना कल्पता है किन्तु चावल लेना नहीं कल्पता है। सूत्र ४३ तत्थ से पुव्वागमणेणं दोऽवि पुव्वाउत्ताई, कप्पंति से दोऽवि पडिगाहित्तए । तत्थ से पुव्वागमणेणं दोऽवि पच्छाउत्ताई, एवं नो से कप्पंति वोऽवि पडिगाहित्तए।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy