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आयारदसा
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सूत्र ३१
वासावासं पज्जोसवियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहा
१ तिलोदगं वा, २ तुसोदगं वा, ३ जवोदगं वा ।८/३१॥ वर्षावास रहे हुए षष्ठ भक्त करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक लेने कल्पते हैं, यथा
१ तिलोदक, २ तुषोदक और ३ यवोदक । सूत्र ३२
वासावासं पज्जोसवियस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहा
१ आयामे वा, १ सोवीरे वा, ३ सुद्धवियडे वा ।८/३२॥ वर्षावास रहे हुए अष्टम भक्त करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक लेने कल्पते हैं, यथा
१ आयाम, २ सौवीर और ३ शुद्ध विकट जल । सूत्र ३३ । वासावासं पज्जोसवियस्स विगिट्टभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ "एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए।
से ऽविय णं असित्थे,
नो वि य णं ससित्थे ।८/३३।। वर्षावास रहे हुए विकृष्ट भोजी भिक्षु को एकमात्र उष्ण-विकट जल ग्रहण करना कल्पता है । वह भी असिक्थ (अन्न कण-रहित), ससिक्थ (अन्न कणसहित) नहीं। ..
सूत्र ३४
वासावासं पज्जोसवियस्स भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए।
सेऽवि य णं असित्थे, नो चेव णं ससित्थे । सेऽवि य णं परिपूए, नो चेव णं अपरिपूए । सेवि य णं परिमिए, नो चेव णं अपरिमिए । सेऽवि य गं बहुसंपन्ने, नो चेव णं अबहुसंपन्ने ।८/३४॥