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________________ १०२ छेवसुत्ताणि __वर्षावास रहे हुए भक्त-प्रत्याख्यानी (आहार परित्यागी) भिक्षु को एक मात्र उष्ण विकट जल ग्रहण करना कल्पता है। वह भी असिक्थ, ससिक्थ नहीं । वही भी परिपूत (वस्त्र गालित) अपरिपूत नहीं । वह भी परिमित, अपरिमित नहीं। · वह भी बहु सम्पन्न (अच्छी तरह उबाला हुआ) अबहुसम्पन्न (कम उबाला. हुआ) नहीं। सूत्र ३५ दत्ति-संख्या-रूपा दशमी समाचारी वासावासं पज्जोसवियस्स संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोअणस्स पडिगाहित्तए, पंच पाणगस्स । अहवा चत्तारि भोअणस्स, पंच पाणगस्स । अहवा पंच भोअणस्स, चत्तारि पाणगस्स । तत्थ गं एगा दत्ती लोणासायणमवि पडिगाहिआ सिआ"कप्पइ से तदिवसं तेणेव भत्त?णं पज्जोसवित्तए । नो से कप्पइ दुच्चंपि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा । ८/३५ दशवीं दत्ति संख्या-रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए दत्तियों की संख्या का नियम धारण करने वाले भिक्षु को भोजन की पाँच दत्तियाँ और पानक की पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है। अथवा–भोजन की चार और पानक की पाँच । अथवा–भोजन की पाँच और पानक की चार दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है। उनमें एक दत्ति नमक की डली जितनी भी हो तो उस दिन उसे उसी भक्त (आहार) से निर्वाह करना चाहिए, किन्तु उसे गृहस्थों के घर में भिक्षा के लिए दूसरी बार निष्क्रमण-प्रवेश करना नहीं कल्पता है। ___ विशेषार्थ-जो भिक्षु भक्त-पान की दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करके गोचरी के लिए निकलता है वह 'संख्या दत्तिक' भिक्षु कहा जाता है। ,
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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