________________
स्वोपनवृत्तिसहितम् [७९१] चिवह चिणिज्जइ । जिब्बइ जिणिज्जइ । सुब्बा सुणिज्जइ । हुव्वइ हुणिज्जइ । थुब्बइ थुणिजइ । लुव्वइ लुणिजइ । पुम्बइ पुणिजइ । धुम्बइ धुणिजइ ॥ एवं भविष्यति । चिबिहिइ । इत्यादि ॥ २४२ ॥
म्मश्वेः । ८ । ४ । २४३ । चिगः कर्मणि भावे च अन्ते संयुक्तो मोका भवति तत्सन्नियोगे क्यस्य च लुक् ॥ चिम्मइ । चिवइ । चिण्णि. जइ । भविष्यति । चिम्मिहिइ । चिबिहिइ । चिणिहिइ ॥२४३॥ .
हन्खनोन्तयस्य । ८ । ४ । २४४ ।
अनयोः कर्मभावेन्त्यस्य द्विरुक्तो मो वा भवति तत्सन्नियोगे क्यस्य च लुक् ॥ हम्मइ हणिज्जइ ॥ खम्मह खणिजइ । भविष्यति । हम्मिहिइ हणिहिह । खम्मिहिइ खणिहिइ ॥ बहुलाधिकाराद्धन्तेः कर्तर्यपि ॥ हम्मइ । हन्तीत्यर्थः ।। कचिन्न भवति ॥ हन्तव्वं । हन्तूण । हओ॥ २४४॥
ब्भो दुह-लिह-वह-रुधामुच्चातः । ८।४।२४५। ... दुहादीनामन्त्यस्य कर्मभावे द्विरुक्तो भो वा भवति तत्सबियोगे क्यस्य च लुग बहेरकारस्य च उकारः॥ दुब्भइ दुहिज्जइ । लिब्भइ । लिहिज्जइ ।बुब्भइ वहिज्जइ। रुभइ रुन्धिज्जइ । भविष्यति । दुन्भिहिद दुहिहिइ इत्यादि ॥ २४५॥
दहो ज्झः। ८।४ । २४६ । दहोन्त्यस्य कर्मभावे द्विरुक्तो झो वा भवति तत्स.