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________________ (४८) श्रीनवतत्वविस्तरार्थः तथा भाषा बोलवानी क्रियारूप के वचनवळ प्राण ते भाषापयाप्तिथी अने मनपर्याप्ति पूर्ण थवाथी जीवने चितवन व्यापाररूप मनोबळ प्राण प्राप्त थाय छे. ए प्रमाणे जीवने जीवित पर्यन्त करवायोग्य ९ प्राणरूप ९ कार्यों ए ६ पर्याप्तिी पूर्ण थवाथी प्रवर्ती शके छे. अने आयुष्य प्राण माटे कोइ शक्तिनी जरुर नहि होवाथी आयुष्य प्राणना कारणरूप कोइ पर्याप्ति नथी. अथवा तो तेमां पण आहार पर्याप्ति आयुष्य प्राणने टकाववामां मुख्यत्वे सहकारी कारण गणाय, कारणके आहार ग्रहण विना जीवित टकी शकतुं नथी ए स्पष्ट छे. . पर्याप्ति संबंधि पूर्वोक्त स्वरूप घणा ग्रंथोमांथी मळी आवे छे, अने श्रीतत्त्वार्थ सूत्रमा पर्याप्ति संबंधि जे विशेषता छे ते नीचे लखेला अक्षरशः भाषान्तरथी समजाशे. श्री तत्त्वार्थ सूत्रने अनुसारे ६ पर्याप्तिनु स्वरूप. - भाष्यार्थः-पर्याप्ति ५ प्रकारनी छे ते आ प्रमाणे--१ आहार पर्याप्ति, २ शरीर पर्याप्ति, ३ इन्द्रिय पर्याप्ति, ४ उच्छवास पर्याप्ति, अने ५ भाषापर्याप्ति. आत्मानी क्रियानी समाप्ति ते पर्याप्ति कहेवाय. टीकार्थ:--पर्याप्ति पांच प्रकारनी छे इत्यादि कह्यं त्यां पर्याप्ति ते पुद्गलस्वरूप छे, के जे कर्ता एवा आत्मानुं करण विशेष छे, अर्थात् जे करणविशेष वडे आत्माने आहारादि ग्रहणशक्ति उत्पन्न थाय छे, अने ते करण जे पुद्गलोवडे बने छे ते आत्माए प्राप्त करेला तथा प्रकारना परिणामवाळा पुद्गलोज पर्याप्ति शब्दवडे कहेवाय छे. ए प्रमाणे सामान्यथी उद्देश करायली पर्याप्तिओने • नामग्रहण पूर्वक विशेषपणे दर्शावतां (भाष्यकार) आ प्रमाणे कहे छे. भाष्यार्थः-आहारने ग्रहण करवामां समर्थ एवा करणनी
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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