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उत्पत्ति ते आहार पर्याप्ति, शरीर करणनी उत्पत्ति ते शरीर पर्याप्ति, इन्द्रियकरणनी उत्पत्ति ते इन्द्रिय पर्याप्ति प्राणापाम एटले उच्छवास निःश्वासने योग्य करणनी उत्पत्ति ते प्राणापान पर्याप्ति, भाषा योग्य पुद्गलोने ग्रहण विसर्जन करवामां समर्थ एवा करणनी उत्पत्ति ते भाषा पर्याप्ति. कमु छ केआहारसरीरिंदिय-उस्सासवओमणोऽहिनिवित्ती॥ होइ जओ दलियाओ, करणं पइ सा उ पज्जत्ती ॥
(अर्थ:-जे दलिकवडे आहार शरीर इन्द्रिय उच्छवास वचन अने मननी निष्पत्ति थाय छे, ते प्रत्ये (शक्तिरुप ) जे करण ते पर्याप्ति कहेवाय )
इति शब्द “ एटलीज पर्याप्तिओ छे" एम दर्शाववा माटे छे. अहिं शंका थाय के-परममुनिओना वचनथी प्रसिद्ध थयेली पर्याप्तिओ ६ छे, तो अहिं ५ केम कही ? तेना जवाबमां जाणवं के अहिं इन्द्रियपर्याप्ति ग्रहण करवाथी मनःपर्याप्तिनुं पण ग्रहण थ. युं जाणवू, माटे पर्याप्तिओ पांच छे एज निर्णय छे. वळी शंका थाय के शास्त्रकारोए तो मनने अनिन्द्रिय कहेल छे तो इन्द्रियना ग्रहगथी (अनिन्द्रियरूप) मन केम ग्रहण कराय ? तेनो जवाब ए छे के जेम चक्षु आदि इन्द्रियो शब्दादि विषयने साक्षात् ग्रहण करे छे तेम मन (साक्षात् विषयग्राही) नथी, परन्तु सुख विगेरेने साक्षात् ग्रहण करनार होवाथी मन अपूर्ण इन्द्रियस्वरूप छे माटे मनने अनिन्द्रिय का छे. अने मन ते इन्द्रनु-आत्मानुं लिंग होवाथी इन्द्रिय पण कहेवाय छे. तथा केटलाएक आचार्यों मनः । पर्याप्ति जूदी कहे छे एम आगळ कहेवामां आवशे. वळी पर्याप्तिओ पांचज छे एम जे निर्णय कह्यो ते बाह्यकरणोनी अपेक्षाए