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________________ जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्, (४७) समाप्त थएली पर्याप्तिओनुं कार्य. प्रति समय आहार ग्रहण करवारूप क्रिया, अथवा गृहित आहारने खल रसरूपे परिणमाववानी क्रिया आहारपर्याप्तिरूप जीवशक्ति वडे थाय छे. ___काययोगरूप शरीर चेष्टा ( शरीरद्वारा आहारग्रहणादि कार्य करवू ) तथा धावन वल्गनादिमां समर्थता थवी, अने देहप्रायोग्य ग्रहण कराता लोमाहार या कवलाहारद्वारा प्राप्त थयेल पुद्गलोने शरीरपणे परिणमविवारूप क्रिया करवी र शरीरपर्याप्ति समाप्त थवाथी थाय छे. (आ पर्याप्ति पूर्ण थवाथी श्री शीलांकाचार्य मते आगळनी ७ मी गाथामां कहेवातो भवधारणीय देह संबंधि काय योग प्राप्त थाय छे). इन्द्रियपर्याप्ति पूर्ण थवाथीजीव इन्द्रियोद्वारा विषयबोध करी शके छे. ___ तथा श्वासोच्छवासने ग्रहण करी परिणमावी अवलंबीने मकवानी क्रियारूप जे उच्छवास प्राण ते श्वासोच्छवास पर्याप्तिवडे उत्पन्न थाय छे. अवश्य पूरी थायज. माटे पर्याप्तिओ पूर्ण थवा नहिं थवामां जूदुं नामकर्मजन्य लब्धिरूप कारण मानवं ते आवश्यक नथी. उत्तर:-पक्षीने उडवामां हवा, चक्षुने देखवामां प्रकाश, अने मत्स्यने तरवामां जळ जो के अवश्य साधनरूप छे, परन्तु पक्षी विगेरेनी पोतानी शक्ति विना उडवा विगेरेनुं कार्य बने नहिं, तेम पर्याप्तिओ अपूर्ण रहेवामां के पूर्ण थवामां आयुष्य सहकारी कारण अवश्य छे, परन्तु पूर्ण थवा न थवानी योग्यता तो नाम कर्मजन्य गणी शकाय. जेम मुद्गर न मारे तो घडो न फुटे अने मुद्र मारे तो घडो फुटे ए वात खरी पण घडामां फुटवा नहिं फुटवानी योग्यता तो प्रथम अन्य कारणथीज रहेली गणी शकाय.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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