SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६ ) श्रीradaविस्तरार्थः पर्याप्तापर्याप्त काळ प्रमाण, अन्तर्मुहूर्त्त पर्यन्त आयुष्यपर्यन्त अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त स्व आयुष्यपर्यन्त पुनः कार्यस्थितिकाळनी विवक्षा करी तो लब्धिअर्पाप्तपणानो जघन्य अने उत्कृष्ट कार्यस्थिति काळ अन्तर्मुहूर्त छे, ( एटला काळ सुधी जीव लब्धिअपर्याप्तपणे केटलाक भव करे ), अने लब्धिपर्याप्तपणानो काळ जघन्य अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्ट सागरोपमशतपृथक्त्व ( घणा सेंकडो सागरोपम ) छे, ए प्रमाणे श्री प्रज्ञापना सूत्रमां कार्यस्थितिपदमां कशुं छे. अने शेष बेनो कार्यस्थिति काळ तो पूर्वोक्त सामान्य काळवत जाणवो. लब्धि अपर्याप्त । भव प्रथम समयथी लब्धि पर्यास्त :करण अप्रर्याप्त करण पर्याप्त "" 99 अन्तर्मुहूतन्यून शंका:- कोई भी पर्याप्तिओ पूर्ण कर्या विना मरण पामे अनेको जीव पर्याप्त पूर्ण करीनेज मरणं पामे तेनुं कारण शुं ? उत्तर:- जे जीवे प्रथमना (पूर्व ) भवमां पर्याप्तनाम कर्म उपार्जन करेलुं होय ( बांधेलुं होय, ) ते जीव आ भवमां आवी पर्याप्तिओ पूर्ण करीनेज मरण पामे, अने जे जीवे अपर्याप्त नाम कर्म बांध होय तो ते अपर्याप्तनामकर्मना उदयवडे पर्याप्तिओ पूर्ण कर्या विनाज मरण पामे. ए प्रमाणे पर्याप्तिओ पूर्ण भवामां अनेन थवामां ' नामकर्म मूळ कारण छे. १ नामकर्मजन्य अपर्याप्तलब्धि अथवा पर्याप्तलब्धि मानवानी शी जरूर छे ? कारण के पर्याप्ति पूर्ण थवीन थवी तेमां तो अल्प- दीर्घा युष्यज कारणरूप होई शके. अर्थात् आयुष्य अल्प होय तो पर्यातिओ पूर्ण न थाय अने आयुष्य अधिक होयतो पर्याप्तिओ
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy