SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्, (३७) र्याप्तिओमां पण जाण, (ए भावार्थ श्री तत्वार्थभाष्यनो छे). हवे ते समाप्तिनो अनुक्रम आ प्रमाणे--औदारिकशरीर संबंधि पर्या प्तिओमां प्रथम आहार पर्याप्ति हेले समयेज पूर्ण थाय छे, त्यार वाद अन्तर्मुहूर्त शरीरपर्याप्ति, त्यारवाद अन्तर्मुहुर्ते इन्द्रियपर्याप्ति पूर्ण थायछे, एप्रमाणे पांचे पर्याप्तिओ अन्तर्मुहर्त अन्तर्मुहत्तने अन्तरे संपूर्ण थाय छे. पुनः आहारक अने वैक्रियशरीर संबंधि पर्याप्ति ओमां तो प्रथम आहारपर्याप्ति प्हेले समयेज पूर्ण थाय छे, बीजी शरीरपर्याप्ति अन्तर्मुहूर्त बाद पूर्ण थाय छे, अने इन्द्रियादि चारपर्याप्तिओ एकेक समयने अन्तरे पूर्ण थायछे. (पुनः श्री भगवतीजी विगेरे मूळ सूत्रमा तो देवोने भाषा अने मनपर्याप्ति समकाळे कही छे जेथी त्यां देवोने 'पांच पर्याप्तिवाला कह्या छे. श्री जीवाभिगमादि वृत्तिमा ए बे पर्याप्तिमा एकत्वनी विवक्षा अल्प अन्तरे पूर्ण थवानी अपेक्षाए कही छे. . शंका-वैक्रिय शरीरी अने आहारक शरीरीने तथा एकेन्द्रियोने १ तएणं से ईसाणे दविंदे देवराया पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गच्छइ, तंजहा-आहारपजत्तीए-शरीरपजत्तीए-- इंदिय पजत्तीए-आणपाण पजत्तीए-मासामण पजत्तीए-ते का. ळने विषे ते इशान देवेन्द्र देवराजा पांच प्रकारनी पर्याप्तिवडे पर्याप्तिभावने पामे ते आ प्रमाणे-आहार पर्याप्तिवडे, शरीर पर्याप्तिवडे, इन्द्रियपर्याप्तिवडे, श्वासोच्छवास पर्याप्तिवडे, अने भाषामन पर्याप्तिवडे ( प्राचीन कर्मग्रंथ टीकामांथी ). २ नपरमिह भाषामनःपर्याप्त्योः समाप्तिकालान्तरस्य शेषपर्याप्तिकालान्तरापेक्षया स्तोकत्वादकत्वेन विवक्षणमिति. __तत्त्वार्थ सूत्रमा इन्द्रिय पर्याप्तिमा मन पर्याप्तिनो अंतर्भाव करीने पांच पर्याप्तिओ कहेली छे ते वात चालु वर्णनमांज कही छ अने कहेवाशे. ए प्रमाणे बन्ने शास्त्रोमां वे रीते पांच पर्याप्तिओ कहेली छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy