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श्रीनवतचविस्तरार्थः
आहारपर्याप्ति तथा शरीरपर्याप्ति कही तो तेओ ग्रहण करेला आहार ने शुं खल रस पणे परिणमावे छे? अने ते रसीभूत आहारमाथी सात धातुओ पण बनावे छे ? कारणके तेओने खल रस के सात धातुमय शरीर होतु नथी एम जैन शास्त्रमा कहेलं छे तो ते त्रणे जीवोने आहार अने शरीरपर्याप्ति केवी रीते होय ?
उत्तर-ए त्रणेने खलरस परिणमन अथवा सात धातुमय शरीर जोके छ नहिं तो पण आहारनुं ग्रहण अने ते आहारने शरीर पणे परिणमावq होय छे, ते कारणथी ए त्रणनी आहारपर्याप्ति आहारने ग्रहण करवानी क्रिया समाप्तिथीज होय छे, जे वर्णन आगळ शंका समाधान पूर्वक कहेवाशे. वळी ते आहारद्वारा प्राप्त करेल पुद्गलोने वैकिय-आहारक-अने (एकेन्द्रिय संबंधि) औदारिक शरीर पणे परिणमावे ते शरीर पर्याप्ति जाणवी. पुनः आहारने उहण करवाथी पण आहारपर्याप्ति नवतत्वमाष्यमां कही छे ते आ प्रमाणे"-आहाराइग्गहणे जा सत्तीतं भणंति पजत्ती"अर्थ:-आहारादि ग्रहण करवामां (जीवनी) जे शक्ति ते शक्तिने पर्याप्ति कहे छे" पुनः शरीरपर्याप्तिमा सात धातुपणे परिणमाववानी शक्तिरूप अथं तो औदारिक शरीरनी मुख्यताएज सर्व शास्त्रकारोए कहेलो छे, ने ते अनुसारे में पण अत्रे कहेल छे, तो पण वस्तुतः तो जे जीवन जेवु शरीर होय तेवू शरीर रचवानी शक्तिने अथवा रचवानी क्रियासमाप्तिनेज शरीरपर्याप्ति गणी शकाय छे.
शंका-६ पर्याप्तिओनो आरंभ समकाळे थाय अने समाप्ति अनुक्रमे थाय तेनुं शुं कारण ?
उत्तर--जेम एक शेर रुमाथी जाडु सूत्र कांतवं होयतो शेर रु व्हेलुं पूर्ण थाय, अने झी' सूत्र कांतवु होय तो घणे काळे कताइ रहे तेम आहारादि पर्याप्तिओ अनुक्रमे सूक्ष्म सूक्ष्मतर परिणामवाली