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________________ जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्, (३५) धि नाणवां. कारण के शब्दादिविषय ग्रहण करवानी शक्ति ए पुद्गलोना आलंबनवडे ज उत्पन्न थाय छे. बाह्यनिवृत्ति इन्द्रियनां पुद्गलो तो शरीरना उपांग रूप होवाथी इन्द्रियपर्याप्ति संबंधि न गणाय, परन्तु शरीर संबंधिज गणाय. आ इन्द्रियपर्याप्ति संबंधि पुद्गलो पण त्रण भवधारणीय देहवर्गणानां जाणवां. ___प्रथमादिसमये सामान्यस्वरूपे ग्रहण करेलां पुद्गलोमांयी तथा विध परिणाम पामेलो जे पुद्गलसमूह आत्माने उच्छवासक्रियामा (ग्रहण परिणमन अने. आलंबनरूप त्रणे क्रियामां) न्याप्त ( व्यापारित ) करवानुं सामर्थ्य आपवावाळो छे ते पुद्गलसमूह उच्छवास पर्याप्तिसंबंधि संभवे छे. परन्तु श्वासोच्छास वर्गणानां पुद्गलो ते उच्छवासपर्याप्ति संबंधि नहिं, कारणके उच्छवासपर्याप्ति संबंधि पुद्गलो तो त्रण भवधारणीय देहवर्गणानां छे. प्रथमादि समये सामान्यस्वरूपे ग्रहण करेलां पुद्गलोमांयी तथाविध परिणाम पामेलो जे पुद्गल समूह आत्माने वचनक्रियामां (ग्रहणादि क्रियामां ) व्यापृत थवा समर्थ करे ते पुद्गलसमूह वचनपर्यातिसंबंधि छे. परन्तु भाषावर्गणानां पुद्गलो ते भाषापर्याप्ति संबंधि नहिं, अर्थात् वचनपर्याप्ति संबंधि पुद्गलो पण पूर्वोक्त ३ वर्गणानां छे. प्रथमादि समये सामान्य स्वरूपे ग्रहण करेलां पुद्गलोमांथी तथा विध परिणाम पामेलो जे पुद्गलसमूह अत्त्माने मनःक्रियामां व्यापृत थवा समर्थ करे छे ते पुद्गलसमूह मनःपर्याप्ति संबंधि छे, परन्तु . मनोवर्गणानां पुद्गलो मन:पर्याप्ति संबंधि न गणाय, कारणके मनःपर्याप्ति संबंधि पुद्गलो तो पूर्वोक्त ३ वर्गणानां छे. शंका-पर्याप्ति संबंधि पुद्गलो शरीरमां कये स्थाने रहे छ ?
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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