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जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्.
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५-जीव ( पुद्गलोपचयना आलंबनथी उत्पन्न थएली) जे शक्तिवडे भाषायोग्य वर्गणा ग्रहण करी भाषापणे परिणमावी अवलंबीने विसर्जन करेते शक्ति भाषापर्याप्ति कहेवाय. घणा ग्रंथोमां ए भावार्थ छे, अने तत्वार्थ वृत्तिमा तो-" अहिं पण वर्गणाना अनुक्रम प्रमाणे भाषायोग्य द्रव्य ग्रहण विसर्जन करवा संबंधिशतिने रचवारूप क्रियानी समाप्ति ते भाषापर्याप्ति.' एम कयुं छे.
६-जीव ( पुद्गलोपचयना आलंबनथी उत्पन्न थएली) जे शक्तिवडे मन योग्य वर्गणा ग्रहण करी मन पणे परिणमावी अवलंबीने विसर्जन करे ते शक्ति मनःपर्याप्ति कहेवाय, ए भावार्थ घणा ग्रंथोमां छे. अने श्री तत्वार्थभाष्य तथा वृत्तिमां तो मनःपर्याप्तिने इन्द्रियपर्याप्तिमा अन्तर्गत गणी छे, अने केटलाएक आचार्योंना अभिप्रायथी जूदी गणी ते वखते एवो अर्थ कह्यो छे के-"मनपणाने योग्य एटले मनोवर्गणा प्रायोग्य अर्थात् मनपणे परिणमवामां समर्थ जे द्रव्यो तेने ग्रहण अने विसर्जन करवासंबंवि सामर्थ्यनी रचना रूप क्रियानी परिसमाप्ति ते मनःपर्याप्ति एम केटलाएक आचार्यों मनःपर्याप्ति जूदी कहे छे” इत्यादि. ___ए६ पर्याप्तिओमांथी प्रथमनी आहार शरीर अने इन्द्रिय ए पहेलां कंडक प्रयत्न करवो पडे छे ते प्रयत्ननुं नाम अवलंबन छे, के जे प्रयत्न करवाथी ते वस्तु एकदम विसर्जन करी शकाय छे. जेम बाणने धनुष्यमांथी फेंक, होय छे तो पणछ पर चढावी पार्छ खेच, पडे छे, कुदको ( फलंग ) मारवी होय तो शरीरने प्रथम संकोचवू ( नीचुं नमावq ) पडे छे तोज फलंग मारी शकाय छे. ए प्रमाणे जेम बाणनो पश्चादाकपण ( पाछु खेचवा ) रूप प्रयत्न, अथवा अंगनो संकोचरूप प्रयत्न ते आलंबन के अवलंबन अथवा अवष्टंभ कहेवाय छे, तेम श्वासोच्छवास भाषा अने मनने एकदम विसर्जन करवा माटे जे प्रथम प्रयत्न करवो पडे छे ते आलंबन कहवाय छे.