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________________ जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्. करवारूप क्रियानी परिसमाप्ति ते आहार पर्याप्ति कहेवाय [ए भावार्थ श्री तत्वार्थभाष्य अने वृत्तिमा छे ). वळी ए भाष्य अने वृत्तिमांज एम पण कर्जा छे के आहारने ग्रहण करवामी समर्थ एवा करणनी (एटले पुगलसमूहनी] निष्पत्ति ते आहार पर्याप्ति ए रीते आहारपर्याप्तिमा ४ भावार्थ जुदा जुदा छ माटे पर्याप्ति एटले शक्ति अथवा पर्याप्ति एटले क्रियासमाप्ति एम बन्ने अर्थ थाय. २-जीव ( पुद्गलोपचयना आलंबनथी उत्पन्न थएली)जे शक्तिवडे रसरुप थएला आहारने सात धातु पणे परिणमावी शरीर रचे ते शक्ति शरीरपर्याप्ति कहेवाय. (रसरूपथयेल आहारमा लोमाहार अने कवलाहार पण लेवा एम श्री 'विचारसारमा कयु के. परन्तु त्वचा निष्पत्ति पहेलानो तो ओज आहारज होय छे. अने रस-रुधिर-मांस-मेद-हाड-मिजा-अने वीर्य ए सात धातु के के जेनाथी औदारिकशरीरनी निष्पत्ति थायछे. ए भावार्थ घणाग्रंथोमां कह्यो छे. अने श्री तत्वार्थ भाष्यमां तो--(प्रथम समये) . सामान्य पणे ग्रहण करेला पुद्गलोमांथी जे पुद्गलो शरीरमायोग्य (शरीर रची शकाय तेवां) होय ते पुद्गलोने शरीर स्वरूपे स्थापवा (रचवा ) रूप क्रियानो परिसमाप्ति ते शरीरपर्याप्ति ३--जीव ( पुद्गलोपचयना आलंबनथी उत्पन्न थयेली) जे शक्तिबड़े धातुरूपे परिणमेला आहारने (एटले बनेली सात धातु ओमांथी दरेकनो केटलोएक भाग लइने ) इन्द्रियरूपे परिणमा ते शक्ति इन्द्रियपर्याप्ति कहेवाय-अथवा पांच इन्द्रिय प्रायोग्य पुद्गलो ग्रहण करी अनाभोगवीर्यवडे (जे क्रियामां आत्मानो स्पष्ट ज्ञानोपयोग नथी प्रवर्ततो तेवी क्रियावडे ) ते: पुद्गलोने इन्द्रियस्वरूपे ___? यया लोमादि आहारमादाय खलरसरूपतया परिणामय ति सा आहारपर्याप्तिः (विचारसारमा ३४ मी गाथानीटकिामां.)
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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