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श्रीनवतत्त्वविस्तरार्थः
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लोने खल रसादिरूपे बनाववामां कारण रूप छे तेम तेवा प्रकारनी ते पुदलोनी (प्रथमादि समय गृहित पुद्गलोनी) जे शक्ति ते पर्याप्ति कहेवाय." ए अनेक ग्रंथोमां कहेलो शब्दार्थ कह्यो, अने तत्वार्थसत्रमा जे विशेषता छे ते चालु वर्णनमांज स्पष्टरीते आगळ दर्शावीश. वळी बृहत्संग्रहणिमां तो "आहार सरीरिदिय" इत्यादि वचनथी शक्तिने आहारादिनी परिणमन क्रियामां 'करणरूप कही छे ते नीचे स्फुटनोटमां दविल छे . .....६ पर्यातिओनां नाम अने अर्थ, .१-जीव (पुद्गलसमूहना आलंबनथी उत्पन्न थयेली) जे शक्तिवडे आहार ग्रहण करी खल रस पणे परिणमावे ते शक्ति आहार पर्याप्ति कहेवाय. [ ए भावार्थ घणा ग्रंथोमां कह्यो छे. अहिं खल एटले मळ अने मूत्र विगेरे रूपे थयेलाआहारना कूचा, अने रस ते सात धातु पणे परिणमवा योग्य जळ सरखो प्रवाही पदार्थ.)-अथवा शरीर-इंन्द्रिय-उच्छवास-भाषा-अने मन एपांच पर्याप्ति प्रायोग्य [पांच प्रकारनी योग्यतावाळां] पुगलोने आहरण एटले ग्रहण १ माहार सरीरिदिय, ऊसास वओ मणोऽभिनिव्वत्ती ॥
होइ जओ दलियाओ, करणं पर सा उ पजत्ती ॥ १॥ _ व्याख्या-आहारशरीरेन्द्रियोच्छवासवचोमनसामभिनिर्वृत्तिरभिनिष्पत्तिर्यतो दलिकाबलभूतात् पुद्गलसमूहात्तस्य दलिकस्य स्वस्वविषये परिणमनं प्रति यत् करणं शक्तिरूपं सा पर्याप्तिः
अर्थ-जे दलिकरूप पुगलसमूहथी आहार-शरीर-इन्द्रियउच्छवास-वचन अने मननी रचना (उत्पत्ति ) थाय छे ते दलि. कनु पोतपोताना विषयरूपे जे परिणमवं. ते परिणमन प्रत्ये (ए. टले ते परिणमवामां कारण भूत पुद्गलोरचयना आलंबनथी उ. त्पन्न थयेली आत्मानी ) शक्तिरूप जे करण ते पर्याप्ति कहेवाय. एमां जीव कर्ता, पुद्गलोपचयज शक्ति ते करण, अने आहारादि परिणमन से क्रिया छे.