________________
जीवतत्त्वे पर्याप्तिस्वस्सूवर्णनम..(7 करवी पडे छे ते शक्तिनुं नाम पर्याप्ति कहेवाय. वण जीवमाए शक्तिओ जे उत्पन्न थाय छे, ते पण पुद्गलसमूहना 'आलंबनयी-नि* मित्तथीज उत्पन्न थाय छ, माटे ते ते शक्ति उत्पन्न वामां निमित्त
भूत-कारणभूत जे पुद्गलोपचय ( पुद्गलोनो समूह ) ते पण (कारणमां कार्य भावनो आरोप करवाथी ) पर्याप्ति कहेवाय छे. ए हेतुथीज पर्याप्ति-जीवशक्तिओ पुद्गलोपचयजन्य (पुगलसमूहथी उत्पन्न थरली ) अथवा पुद्गलरूप कहेवाय छे. ए भावार्थ घणा ग्रंथोनो, अने श्री तत्वार्थभाष्य तथा वृत्तिमांतो कहुं छे के "ते ते शक्तिमा निमित्तभूत पुगलसमूहसंबंधी क्रियानी परिसमाप्ति ते पर्याप्ति कहेवाय छे." ए प्रमाणे पर्याप्ति एटले शक्ति, शक्तिजनक पुद्गल, अने समाप्ति ए त्रण अर्थ थाय छे.. ___ श्री बृहत्संग्रहणी विगेरे अनेक शास्त्रोमां कहुं छे के-"पर्याप्ति एटले शक्ति अर्थात् सामर्थ्य विशेष, ते (शक्ति) पुद्गलद्रव्यना उपचयथी (समूहथी) थायछे, अर्थात् उत्पत्ति स्थानमां आवेला जीवे प्रथम समये जे पुद्गलो ग्रहण काँ तेनी अने प्रतिसमय ग्रहण करातां बीजां पुद्गलो के जे तेना (प्रथम समय गृहित पुद्गलोना) संबंधथी तत्स्वरूपे थएलां छे तेनी जे शक्ति आहारादि पुद्गलोने खल रसादिरूपे बनाववामां कारणभूत छे (ते पर्याप्ति.) जेम उदरमा रहेलां (तथा पकारनां तैजसादि) पुद्गलो (नी शक्ति) ग्रहण करायेल आहार पुद्ग
१ संसारी जीवोना सर्व पौगलिक व्यापारो पुद्गलसमूहना आलंबनथी ज होय छे, जीवनी जो के स्वतंत्र शक्ति छे पण ते शक्ति सिद्ध जीवोमां अपौलिक अने संसारी जीवोमां पौगलिक होय छे. श्री कर्मप्रकृति विगेरेमा कड्यु छ के-" द्रव्यनिमित्तं हि संसारिणां वीर्यमुपजायते" एटले संसारी जीवोनुं वीर्य पुद्गलद्रव्यना निमित्तथीज होय छे. माटे आहारग्रहणादि पौद्गलिक शक्तिओ पण पुद्गलद्रव्यना निमित्तथीज छे.