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(२८) श्रीमवतस्वविस्तरार्थक - आहारसरीरिंदिय, पज्जत्ती आणुपाणभासमणे घर पंचपंच छप्पिय, इगविगलाऽसन्निसन्नीणं ॥६॥
संस्कृतानुवादः . आहारशरीरेन्द्रिय-पर्याप्तय आनप्राणभाषामनांसि ॥ चतस्रः पंच पंच पडपि चै-कविकलाऽसंज्ञिसंज्ञिनाम् ॥६॥
शब्दार्थः आहार-आहारपर्याप्ति : पंच-पांच पर्याप्ति सरीर-शरीरपर्याप्ति छप्पि-छए पर्याप्ति । इंदिय-इन्द्रियपर्याप्ति य-(पदपूरणार्थ ] काळी पज्जति-पर्याप्ति
इग-एकेन्द्रियजीवोने आणपाण-श्वासोच्छवास पर्याप्ति विगल-विकलेन्द्रियजीवोने, भास-भाषा पर्याप्ति असन्नि-असंज्ञि पंचेन्द्रियने मणे-मन पर्याप्ति
सन्नीणं-सज्ञिपंचेन्द्रियजीवोने चउ-चार पर्याप्ति ___गाथार्थः-आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छवासपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति अने मनापर्याप्ति, ए ६ पर्याप्तिमांथी एकेन्द्रिय जीवोने चार, विकलेन्द्रिय जीवोने पांच, असंज्ञि पं. चेन्द्रियने पांच, अने संज्ञिपंचेन्द्रिय जीवोने छए पर्याप्तिो होय छे.
विस्तरार्थः-जीव जे भवमा उत्पन्न थाय छे ते भवमां जीवनशक्तिना निर्वाह माटे ( जीवित टकी रहेवा अने ते जीवनमा करवा योग्य अवश्य कार्यों माटे ) जे आहारग्रहणादि-अवश्य क्रियाओ करवी पडे छे, अने ते क्रियाओ माटे जे सामर्थ्य-शक्ति उत्पन
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