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जीवत
जीवलक्षणवर्णनम्,
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तथा इच्छानो अभाव ते तप कहेवाय छे, अथवा ते इच्छा निरोध करवाना ' अभ्यासरूप ' हेतुरूप अने ' चिन्हरूप जे अनशनादि ( उपवासादि ) ते पण व्यवहारथी तप कहेवाय. ए. तप गुणपण सर्वज्ञने सर्वोशे संपूर्ण होय छे, अने ' शेष जीवोने थोडे घणे अंशे होय .
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चारित्र गुण होय नहिं, पुनः जे अनंतानुबंधि कषाय जीवना सम्यक्त्व गुणने पण रोकी राखे छे ते अनंतानुबंधिना उदयवाळा सू० निगोदादि मिथ्यादृष्टिओने चारित्र गुणनों लेश पण केम संभवे ? पुनः सू० निगोदादि मिथ्यादृष्टि जीवोने पण जो लेश मात्र चारित्रगुण होय छे, तो देशविरति गुणस्थानवाळा श्राकने देशथी (लेश ) चारित्रनो उदय मानवों ते शा माटे ? कारणके प्रथम गुणस्थानथी पांचमा गुणस्थान सुधीना सर्व जीवोने तमारा कहेवा प्रमाणे देश चारित्र गुण तो प्रगट थलोज छे.
उत्तर:- हे जिज्ञासु ! ए. शंका योग्य छे, परन्तु सर्वघाति 'कषायोदयवाळा जीवने पण चारित्रगुणना केटलाएक पर्याय उघाडा छे, जेम अति गाढ मेघावृत दिवसमां सूर्यनो प्रकाश किरणना रूपमां तो बिलकुल नथोज तोपण सर्वथा अंधकार नथी, परन्तु ते दिवस अति अल्प प्रकाशयुक्त छे, अने जो तेम पण न होय तो दिवस अने रात्रिनो भेद न पडे, अर्थात् दिवस रात्रि एक सरखी थाय. तेवी रीते श्रद्धापूर्वक कंडक व्रतादि अंगीकार करी शके तेवो चारित्र गुण तो ए जीवोमां नथी, परन्तु अव्यक्त अने अति अल्प क्रोधादिनी मंदतारूप चारित्र गुण तो अवश्य वत्तै छे, कारणके अनंतानुबंध्यादि सर्वघाती कषायो सर्वोत्कृष्ट होय तोपण चारित्र गुणना केटलाक पर्यायो निरावरणीय रहेवाथी प जीवोमां अव्यक्त चारित्र गुण होइ शके छे, श्री कर्मप्रकृति ग्रंथमां उदीरणा करणनी ४८ मी गाथामां " मोहनीयनी २८, अन्तरायनी ५, केवळज्ञानावरण अने केवळदर्शनावरण ए ३५ प्रकृतिओ जीवद्रव्यने संपूर्ण हणे पण जीवना सर्व पर्या-
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