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जीवतत्वेजीवलक्षणवर्णनमः
एकेन्द्रिय जीवोमां विज्ञान शक्ति नहिं जणाती होवाथी तेश्रोमां विज्ञान शक्ति बिलकुल नथी एम न कही शकाय, कारणके 'औ. षधी प्रयोगवडे बेशुद्ध-बेभान थएला मनुष्योमा जेम अव्यक्त चैतन्य ( विज्ञान शक्ति) विद्यमान छ, तेम एकेन्द्रियमां पण अव्यक्त चैतन्य विद्यमान छे. ए प्रमाणे एकेन्द्रिय जीवोनी विज्ञानशक्ति अव्यक्त अने अल्प होवाथी बीजा जीवोनी माफक प्रत्यक्ष अनुभवमां आवी शकती नथी, पण श्री सर्वज्ञोए अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद सरखा जीवने पण अक्षरनो (ज्ञाननो) अनंतमो भाग उघाहो कहो छे, अने एटलो' निकृष्ट ज्ञानांश पण जो ते जीवने न होय वो ते जोव नहिं पण अजीव सरखोज गणाय. ए रीते अ सर्वज्ञ संसारी जीवोने दर्शनगुण अने ज्ञानगुण कोइने व्यक्त तो कोइने अव्यक्त कोइने अल्प तो कोइने अधिक पण होय छे, अने सर्वज्ञने तो ज्ञान गुण दर्शन गुण बन्ने सर्वांशे संपूर्ण होय छे. पुनः असर्वज्ञ जीवोने 'प्रथम दर्शन (एटले सामान्य उपयोग ) अने पछी ज्ञान (एटले विशेष उपयोग ) होय छे, अने सर्वज्ञने तो प्रथम समये ज्ञान बीजे समये दर्शन त्रीजे समये ज्ञान अने चोथे समये दर्शन ए प्रमाणे प्रथम ज्ञान पछी दर्शन अनुक्रमे परावर्तमान पाम्या करे छे. पुनः असर्वज्ञ जीवोनुं ज्ञान अथवा दर्शन अन्तर्मुहूर्त (बे घडीनी अंदरना काळ ) प्रमाण होय छे, अने स
. १ दरदीने शस्त्रप्रयोग अजमावतां औषधीना प्रयोगथी बे. शुद्ध करवो पडे छे. जे प्रयोग जगप्रसिद्ध छे.
२ बीजाने अनुभवमा न आवी शके तेवी रीते अप्रन्ट. .३ अति अल्प.
४ प्रथम एटले जे समये सर्वज्ञत्व (केवलज्ञान ) प्राप्त थाय ते समये .. .