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________________ (२२) খলনজনিন: जगत्मा सर्व पदार्थों सामान्य धर्म ('आ कंडक छे, अथवा र आ घट छ, आ पट छे इत्यादि सामान्य बोधक धर्म) अने विशेष धर्म (आ. अमुक छे, अथवा आ घट वा पट अमुक वर्णनो, अमुक स्थाननो, अमुक कत्र्ता नो इत्यादि विशेषबोधक धर्म ) युक्त छे. तेमां पदार्थोंना सामान्य धर्मनो अवषोध ( ज्ञान ) ते दर्शन, अने विशेष धर्मनी अवबोध ते ज्ञान कहेवाय छे. अथवा जीवनो सामान्य (वस्तुना सामान्य-साधारण धर्म संबंधि ) उपयोग ते दर्शन, अने विशेष उपयोग ते ज्ञान. अथवा 'निराकार उपयोग ते दर्शन, अने 'साकार उपयोग ते ज्ञान, ए सर्व अर्थ परस्पर सरखा अर्थवाला छे. ए प्रमाणे दर्शनगुण अने ज्ञानगुण ए जीवना मुख्यधर्म मुख्यलक्षण अथवा मुख्य चिन्ह छ, कारणके जीव सिवाय बीजा कोइ पदार्थमां थोडे अंशे वा घणे अंशे विज्ञानशक्ति लेश पण होती नथी, अने विज्ञानशक्ति वडेन मा जीव छै एम ओळखाय छे. आ दर्शन गुण अने ज्ञान गुण अपर्यातसूक्ष्म एकेन्द्रियथी प्रारंभीने पर्याप्त संनि पंचेन्द्रिय सुधीना सर्व जीवभेदमां थोडे घणे अंशे होय छे, पुनः पृथ्वी जळ-अग्नि इत्यादि . १ ए नैषयिक अर्थावग्रहनी मुख्यताए दर्शन ते निराकार उपयोगमां गणाय छे, उपलक्षणथी नैश्चयिक इहा तथा व्यंजनावग्रह पण दर्शनरूप ज छे. २ "आ घट छे" ए जोके नैश्चयिक अपाय होवाथो ज्ञानरूप छे परन्तु व्यवहारिक अर्थावग्रहनी मुख्यताए दर्शनरूप छे. .. ३ “ आ अमुक छे” ए नैश्चयिक अपायनी मुख्यताए शानरूप छे, अन्यथा दर्शनरूप तो गणेल ज छे. ...४ निराकार एटले सामान्य. ५ साकार एटले विशेष ( आकार सहित.)
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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