________________
(१८) . श्रीनवतत्व विस्तरार्थः मां एवा प्रकारना पण 'असंख्य तथा 'अनंत सूक्ष्म जंतुओ रहेला छे. 'बळी सूक्ष्मदर्शक यंत्रथी जोवा इच्छीए तोपण ते देखी शकाय नहि कारणके हवा बादर (एटले इन्द्रिय गोचर) होते छते पण गमे तेवा सूक्ष्मदर्शकथी जोइ शकाय नहिं तो ते सूक्ष्मदर्शक यंत्रथी सूक्ष्म एकेन्द्रिय जंतुओं केवी रीते देखी शकाय ? वळी ए सूक्ष्म एकेन्द्रियमां सूक्ष्म पृथ्वीना जंतुओ (सू० पृथ्वीकाय ) असंख्य छे, तेमज सूक्ष्म अप्कायादि (पाणी अग्नि अने वायुना) जीवो पण असंख्य छे. परन्तु सूक्ष्म वनस्पति जंतुओ तो आ जगतमां तेथी पण अधिक एटले अनंत छे. कारणके अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकाय, एक शरीर जेने सूक्ष्म साधारणशरीर वा सूक्ष्म निगोद अथवा सूक्ष्म अनन्तकाय कहे छे तेवी असंख्यात निगोदोनो एक गोलक ( गोळो ) बने तेवा असंख्यात गोलको ( गोळाओ) चौदराज लोकनी अंदर छे. • तथा जे पृथ्वी--जळ--अग्नि-अने वनस्पति द्रष्टि स्पर्शनादि इन्द्रिय गोचर थाय के अने जे हवा स्पर्शगोचर थाय छे ते पृथ्वी वगेरे सर्वे वादर एटले स्थूळ छे, अने ए पृथ्वी-जळ-अग्नि--हवा अने वनस्पति सर्व जीव युक्त छे, माटे ए पृथ्वी विगेरे जीवो बादर एकेन्द्रिय कहेवाय छे. बादर वनस्पतिकायमा केटलाक साधारण शरीरी छे, जेवां के जमीनकंद, आद, मूळा, शेवाल विगेरे. केटलाक प्रत्येक शरीरी छे, जेवा के आम्र, निंब, फळ, फुल विगेरे.
तथा शंख-कोडी--जळो-अलसीयां--पूरा-कृमी इत्यादि द्वीन्द्रि
१ सूक्ष्म पृथ्वी-अप्-तेउ-वायुकाय ए चारनी अपेक्षाये. ... २ सूक्ष्मसाधारण वनस्पतिकाय (सूक्ष्मनिगोद )नी अपेक्षाये.
३ एक शरीरमां अनन्तजीवो होय ते साधारण शरीरी, के जओ सरखी रोते उच्छवास आहारादि लेनारा छे. . ४ एक शरीरमां एक एक जीव अलग अलग होय ते प्रत्येक घरीरी.